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गुरूवार, जून 1, 2023
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पार्षद करवा सकेंगे शहर के किसी भी वार्ड का विकास, बाजार को मजबूत करने की कवायद शुरू

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Shimla News: हिमाचल प्रदेश के बाद कर्नाटक में मिली जीत से कांग्रेस निश्चित तौर पर उत्साह में है और जो यह समझते थे कि ग्रैंड ओल्ड पार्टी देश की राजनीति में अपनी प्रासंगिकता खो चुकी है, उनके लिए यह नतीजे एक झटके से कम नहीं हैं।

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लेकिन कांग्रेस को अति आत्मविश्वास में आने की जरूरत नहीं क्योंकि हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक दोनों में ही सरकार बदलने का रिवाज है, जो कि कायम रहा है। यह सही है कि संगठित रूप में चुनाव लडऩे के लिए कांग्रेस को बधाई मिलनी चाहिए। कांग्रेस भाजपा सरकार की नाकामियों को जनता के बीच बखूबी लेकर आई और देवगौड़ा की पार्टी किंग मेकर नहीं बन पाई, जैसी कि कुछ राजनीतिक विश्लेषकों ने उम्मीद जताई थी।

कांग्रेस ने कर्नाटक के स्थानीय मुद्दों को पहचाना, जबकि भाजपा का जोर गैर-स्थानीय मुद्दों पर अधिक रहा और साथ ही एंटी इनकंबैंसी का भी असर रहा। कांग्रेस हर बार अडानी-अम्बानी, राफेल जैसे मुद्दे उठाती आई है, जिनसे आम आदमी का कोई खास कनैक्ट नहीं। कर्नाटक में कांग्रेस ने यह गलती नहीं की, जिसका उसे फायदा मिला। लेकिन यदि कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों को लगता है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में वे कोई परिवर्तन कर सकते हैं तो संभवत: यह अति आत्मविश्वास है।

देश का मतदाता इतना परिपक्व है कि वह लोकल मुद्दों और देश के मुद्दों में फर्क जानता है और उसी के मुताबिक वोट करता है। दूर क्यों जाएं, राजस्थान को ही देख लेते हैं। दिसम्बर 2018 में जिस मतदाता ने भाजपा की वसुंधरा राजे सरकार को सत्ता से बाहर कर कांग्रेस को राज्य की बागडोर हाथ में दी, उसी मतदाता ने कुछ ही महीनों बाद 2019 में लोकसभा चुनाव में सारी की सारी 25 सीटें भाजपा की झोली में डाल दीं।

अभी इसी वर्ष कुछ और राज्यों में भी विधानसभा चुनाव हैं, उनके परिणाम जिस भी पार्टी के पक्ष में आएं, उससे यह नहीं समझा जाए कि वह पार्टी लोकसभा भी जीतेगी। आम मतदाता जानता है कि देश के मुद्दों पर किसे वोट करनी है और राज्य के मुद्दों को कौन सुलझा सकता है। भारत का आम आदमी मोदी सरकार द्वारा मंदिरों के जीर्णोद्धार, रोड इंफ्रास्ट्रचर को लेकर हो रहे काम से बेहद खुश है। जयपुर से दिल्ली जाने के लिए नए बने एक्सप्रेसवे से सफर करिए तो लगेगा विदेश में हैं। देश का आम आदमी सब देखता है और समझता है। उसे बजरंग बली और बजरंग दल में अंतर भी पता है और बिजली बिल में जेब कितनी ढीली हो रही है, वह भी जानता है। सारांश यह है कि राज्यों के परिणाम को लोकसभा का सैमीफाइनल न माना जाए… पिक्चर अभी बाकी है।

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