New Delhi News: भारतीय जनता पार्टी (BJP) के सांसद भीम सिंह ने संविधान में बड़े बदलाव की मांग की है। उन्होंने शुक्रवार को राज्यसभा में एक निजी विधेयक पेश किया। इसमें प्रस्तावना से ‘सेक्युलर’ (पंथनिरपेक्ष) और ‘सोशलिस्ट’ (समाजवादी) शब्दों को हटाने की बात कही गई है। सांसद का कहना है कि आपातकाल के दौरान ये शब्द जबरन जोड़े गए थे। इससे संविधान की मूल भावना प्रभावित होती है।
आपातकाल में बिना चर्चा के हुआ संशोधन
भीम सिंह ने कहा कि 1950 में लागू मूल संविधान में ये दोनों शब्द मौजूद नहीं थे। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 1976 में 42वें संशोधन के जरिए इन्हें जोड़ा था। उस समय देश में आपातकाल लगा हुआ था। अटल बिहारी वाजपेयी समेत विपक्ष के सभी बड़े नेता जेल में बंद थे। संसद में इस गंभीर मुद्दे पर कोई चर्चा नहीं हुई थी। सांसद ने इसे लोकतंत्र की हत्या करार दिया है। उनका मानना है कि संविधान अपने मूल स्वरूप में ही रहना चाहिए।
अंबेडकर ने क्यों नहीं जोड़े थे ये शब्द?
सांसद ने संविधान सभा की पुरानी बहस का भी जिक्र किया। उन्होंने बताया कि डॉ. भीमराव अंबेडकर ने इन शब्दों को जोड़ने से मना कर दिया था। अंबेडकर का मानना था कि संविधान का ढांचा ही ऐसा है जो देश को पंथनिरपेक्ष बनाएगा। इसके लिए अलग से कोई शब्द लिखने की जरूरत नहीं है। साथ ही, आर्थिक नीतियों को भविष्य की पीढ़ियों पर थोपा नहीं जा सकता। इसलिए ‘समाजवाद’ शब्द को भी मूल मसौदे में शामिल नहीं किया गया था।
तुष्टीकरण की राजनीति का बड़ा आरोप
भाजपा नेता ने आरोप लगाया कि ये शब्द केवल तुष्टीकरण के लिए संविधान की प्रस्तावना में डाले गए। उन्होंने कहा कि ‘समाजवाद’ शब्द सोवियत संघ को खुश करने के लिए लाया गया था। वहीं, ‘पंथनिरपेक्ष’ शब्द का इस्तेमाल एक खास वर्ग को लुभाने के लिए किया गया। उन्होंने सदन में सवाल उठाया कि क्या 1976 से पहले भारत धर्मनिरपेक्ष नहीं था? क्या नेहरू और शास्त्री की सरकारें सांप्रदायिक थीं? ये शब्द केवल भ्रम पैदा करते हैं।
