Mauritius News: भारत के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस बीआर गवई ने एक बार फिर बुलडोजर कार्रवाई की आलोचना की है। मॉरीशस में एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए उन्होंने स्पष्ट किया कि भारतीय न्याय प्रणाली बुलडोजर के शासन से नहीं चलती। उन्होंने कहा कि देश में कानून का शासन ही सर्वोपरि है। यह उनका पिछले दस दिनों में इस मुद्दे पर दूसरा बयान है।
सीजेआई गवई मॉरीशस की तीन दिवसीय आधिकारिक यात्रा पर हैं। उन्होंने ‘सबसे बड़े लोकतंत्र में कानून का शासन’ विषय पर व्याख्यान दिया। इस दौरान उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले का जिक्र किया जिसमें बुलडोजर न्याय की निंदा की गई थी। उन्होंने कहा कि इस फैसले ने एक स्पष्ट संदेश दिया है।
न्यायमूर्ति गवई ने अपने संबोधन में कानून के शासन के सिद्धांत पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि यह सिद्धांत सुशासन और सामाजिक प्रगति का मानक है। यह कुशासन और अराजकता के बिल्कुल विपरीत है। उन्होंने भारत के संविधान और मौलिक अधिकारों की रक्षा के महत्व को रेखांकित किया।
सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर न्याय मामले में महत्वपूर्ण टिप्पणियां की थीं। अदालत ने माना था कि कथित अपराधों के आधार पर घर गिराना गलत है। यह कानूनी प्रक्रिया का उल्लंघन करता है। यह संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत आश्रय के अधिकार को भी चोट पहुंचाता है।
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया था कि कार्यपालिका की भूमिका सीमित है। वह न्यायपालिका के क्षेत्र में दखल नहीं दे सकती। किसी के घर को बिना कानूनी प्रक्रिया के गिराना न्यायिक प्रक्रिया को कमजोर करता है। इससे कानून का शासन खतरे में पड़ जाता है।
मॉरीशस के इस कार्यक्रम में कई गणमान्य व्यक्ति मौजूद थे। राष्ट्रपति धर्मबीर गोखूल और प्रधानमंत्री नवीनचंद्र रामगुलाम ने भी भाग लिया। प्रधान न्यायाधीश रेहाना मुंगली गुलबुल भी वहां उपस्थित थीं। इस मंच ने भारत की न्यायिक प्रणाली को वैश्विक स्तर पर प्रस्तुत किया।
सीजेआई गवई ने केशवानंद भारती मामले जैसे ऐतिहासिक फैसलों का भी उल्लेख किया। उन्होंने समझाया कि कानून के शासन ने सामाजिक न्याय में अहम भूमिका निभाई है। हाशिए के समुदायों ने अपने अधिकारों की मांग के लिए इसी भाषा का इस्तेमाल किया है।
उन्होंने महात्मा गांधी और डॉक्टर भीमराव आंबेडकर के योगदान को याद किया। उनकी दूरदर्शिता ने दिखाया कि भारत में कानून का शासन सिर्फ नियमों का संग्रह नहीं है। यह एक जीवंत सिद्धांत है जो लोकतंत्र की रक्षा करता है।
न्यायमूर्ति गवई ने हाल के कुछ और महत्वपूर्ण फैसलों का जिक्र किया। इनमें तीन तलाक की प्रथा को खत्म करने वाला फैसला शामिल है। निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार घोषित करने वाले फैसले पर भी उन्होंने प्रकाश डाला।
उन्होंने कहा कि ये फैसले भारतीय न्यायपालिका की प्रगतिशील सोच को दर्शाते हैं। अदालतें लगातार नागरिकों के अधिकारों का विस्तार कर रही हैं। यह लोकतंत्र की मजबूती का एक महत्वपूर्ण पहलू है।
मुख्य न्यायाधीश का यह बयान एक स्पष्ट संदेश देता है। यह संदेश नागरिकों, सरकार और पूरे समाज के लिए है। न्यायिक प्रक्रियाओं का पालन करना ही लोकतंत्र की असली पहचान है। कानून के शासन के बिना लोकतंत्र अधूरा है।
भारत का सर्वोच्च न्यायालय लगातार इस सिद्धांत को मजबूत कर रहा है। बुलडोजर न्याय पर फैसला इसी दिशा में एक और कदम है। यह फैसला भविष्य में भी कानून के शासन के लिए एक मिसाल बनेगा।
