Delhi News: मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने केंद्र सरकार को जस्टिस सूर्यकांत को अगला प्रधान न्यायाधीश नियुक्त करने की सिफारिश की है। वर्तमान सीजेआई के 10 नवंबर को सेवानिवृत्त होने के बाद जस्टिस सूर्यकांत देश के 53वें प्रधान न्यायाधीश के रूप में पदभार संभाल सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठतम न्यायाधीश होने के नाते उनकी नियुक्ति परंपरा के अनुरूप है।
जस्टिस सूर्यकांत का प्रधान न्यायाधीश के रूप में कार्यकाल लगभग एक वर्ष रहेगा। वह 9 फरवरी 2027 को 65 वर्ष की आयु में सेवानिवृत्त होंगे। संविधान के अनुच्छेद 124 के तहत सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयु 65 वर्ष निर्धारित है।
जस्टिस सूर्यकांत का न्यायिक सफर
जस्टिस सूर्यकांत का जन्म 10 फरवरी 1962 को हरियाणा के हिसार जिले में हुआ था। उन्होंने महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय से कानून की डिग्री प्राप्त की। उन्होंने हिसार जिला न्यायालय में वकालत की शुरुआत की और बाद में पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय में प्रैक्टिस की।
वर्ष 2000 में जस्टिस सूर्यकांत हरियाणा के महाधिवक्ता नियुक्त हुए। वह इस पद पर पहुंचने वाले राज्य के सबसे युवा वकील बने। फरवरी 2014 में उन्हें पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त किया गया।
सुप्रीम कोर्ट में उल्लेखनीय योगदान
मई 2019 में जस्टिस सूर्यकांत सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश बने। वह कई महत्वपूर्ण मामलों की सुनवाई कर चुके हैं। अनुच्छेद 370, राजद्रोह कानून और पेगासस मामले में उनके फैसले चर्चा का विषय रहे हैं।
वह उस पीठ का हिस्सा रहे जिसने औपनिवेशिक काल के राजद्रोह कानून पर रोक लगाई। इसके साथ ही न्यायालय ने सरकार से इस कानून की समीक्षा का निर्देश दिया। उन्होंने चुनाव प्रक्रिया में पारदर्शिता को बढ़ावा देने वाले कई आदेश पारित किए।
महत्वपूर्ण निर्णय और टिप्पणियां
जस्टिस सूर्यकांत ने रणवीर अल्लाहबादिया मामले में स्पष्ट किया कि लोकप्रियता किसी को सामाजिक मर्यादाएं तोड़ने का अधिकार नहीं देती। नूपुर शर्मा मामले में उन्होंने कहा कि सार्वजनिक पदों पर बैठे लोगों को अपने शब्दों की जिम्मेदारी लेनी चाहिए।
स्वाति मालीवाल मामले में उन्होंने महिला सांसद पर हमले की कड़ी निंदा की। मोहम्मद जुबैर मामले में उन्होंने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का पक्ष लिया। उनका मानना था कि सोशल मीडिया पर राय व्यक्त करने से रोकना संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है।
न्यायिक सुधारों में भूमिका
जस्टिस सूर्यकांत ने बार एसोसिएशनों में महिलाओं के लिए आरक्षण का समर्थन किया। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन में एक-तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित करने का निर्देश दिया। वन रैंक-वन पेंशन मामले में उन्होंने योजना को संवैधानिक रूप से वैध ठहराया।
वह सेना में महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन देने के मामले की सुनवाई कर चुके हैं। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के अल्पसंख्यक दर्जे संबंधी मामले में भी उनकी भूमिका महत्वपूर्ण रही। पेगासस मामले में उन्होंने निगरानी के आरोपों की जांच के लिए विशेषज्ञ समिति गठित की।
भविष्य की चुनौतियां
प्रधान न्यायाधीश के रूप में जस्टिस सूर्यकांत के सामने कई चुनौतियां होंगी। न्यायालय में लंबित मामलों का निपटारा प्रमुख चुनौती होगी। न्यायिक नियुक्तियों और न्यायपालिका की स्वायत्तता संबंधी मुद्दे भी महत्वपूर्ण रहेंगे।
न्याय तक पहुंच बढ़ाना और न्यायिक प्रक्रियाओं को सरल बनाना उनके कार्यकाल के प्रमुख लक्ष्य हो सकते हैं। तकनीकी के उपयोग से न्यायिक प्रणाली में सुधार की संभावनाएं भी उनके समक्ष होंगी। न्यायपालिका की जवाबदेही और पारदर्शिता पर भी ध्यान देना होगा।
