Raipur News: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण तलाक मामले में अपना फैसला सुनाया है। कोर्ट ने पति की तलाक याचिका को सही ठहराते हुए पत्नी की अपील खारिज कर दी। अदालत ने पत्नी के व्यवहार को मानसिक क्रूरता माना। इस फैसले में पति को माता-पिता से अलग रहने के लिए मजबूर करने और उसे ‘पालतू चूहा’ जैसे शब्दों से अपमानित करने को गंभीर माना गया। फैमिली कोर्ट के तलाक के आदेश को भी बरकरार रखा गया है।
हाईकोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि पत्नी का लगातार का अपमानजनक व्यवहार मानसिक क्रूरता की श्रेणी में आता है। कोर्ट ने कहा कि पति को उसके माता-पिता से अलग करने की जिद ने उसे गहरी मानसिक पीड़ा दी। भारतीय संदर्भ में संयुक्त परिवार की परंपरा का जिक्र करते हुए इस तरह के दबाव को नकारात्मक बताया। अदालत ने माना कि यह व्यवहार विवाह को जारी रखना असंभव बना देता है।
पति के आरोप क्या थे?
पति ने अदालत में बताया कि उनकी शादी 28 जून 2009 को हुई थी। शादी के बाद से ही पत्नी का व्यवहार उनके और उनके माता-पिता के प्रति अच्छा नहीं था। पत्नी लगातार उनके माता-पिता के साथ दुर्व्यवहार करती थी। वह उन्हें माता-पिता से अलग एक अलग घर में रहने के लिए मजबूर करती थी। पति के अनुसार पत्नी ने उनके खिलाफ अक्सर अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल किया।
आरोपों में यह भी शामिल था कि पत्नी ने जबरन गर्भपात कराने की भी कोशिश की। इन सभी घटनाओं ने पति की मानसिक स्थिति पर गहरा असर डाला। उन्होंने खुद को प्रताड़ित महसूस किया। इन्हीं आधारों पर पति ने फैमिली कोर्ट में तलाक के लिए याचिका दायर की थी। फैमिली कोर्ट ने भी पति के पक्ष में फैसला सुनाया था।
हाईकोर्ट ने क्या कहा?
पत्नी ने फैमिली कोर्ट के फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील की थी। लेकिन हाईकोर्ट ने उनकी अपील को खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि पत्नी का व्यवहार मानसिक क्रूरता का स्पष्ट मामला है। ‘पालतू चूहा’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल पति की गरिमा के खिलाफ था। माता-पिता से अलग रहने के लिए दबाव डालना भी क्रूरता है।
अदालत ने जोर देकर कहा कि लगातार का अपमान और अलगाव की मांग ने पति के मानसिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाया। ऐसी स्थिति में पति से विवाहित जीवन जारी रखने की उम्मीद नहीं की जा सकती। इसलिए तलाक ही एकमात्र उचित राहत है। हाईकोर्ट का फैसला पारिवारिक विवादों में मानसिक क्रूरता की व्याख्या को स्पष्ट करता है।
गुजारा भत्ते का आदेश
तलाक मंजूर करते हुए अदालत ने गुजारा भत्ते के लिए भी आदेश जारी किए। पत्नी को पति को 5 लाख रुपये का स्थायी गुजारा भत्ता एकमुश्त देने का आदेश दिया गया। इसके अलावा पत्नी को अपने बेटे के लिए 6,000 रुपये मासिक गुजारा भत्ता देना होगा। साथ ही पति को पत्नी के लिए 1,000 रुपये मासिक गुजारा भत्ता देने का भी आदेश है।
यह फैसला वित्तीिक जिम्मेदारियों का संतुलन बनाता है। पति और पत्नी दोनों की आर्थिक स्थिति को ध्यान में रखा गया है। पति छत्तीसगढ़ राज्य सहकारी बैंक में अकाउंटेंट हैं। वहीं पत्नी वर्तमान में एक लाइब्रेरियन के पद पर कार्यरत हैं। अदालत ने इन्हीं परिस्थितियों में भत्ते का निर्धारण किया।
यह मामला रायपुर के एक दंपत्ति से संबंधित है। हाईकोर्ट के इस फैसले ने पारिवारिक कानून में एक नजीर पेश की है। यह फैसला दर्शाता है कि मानसिक क्रूरता केवल शारीरिक हिंसा तक सीमित नहीं है। लगातार का मनोवैज्ञानिक दबाव और अपमानजनक व्यवहार भी इसमें शामिल है। अदालतों का रुख अब ऐसे व्यवहारों के प्रति सख्त होता जा रहा है।
