Bihar News: दिल्ली के आनंद विहार स्टेशन से बिहार के मोतिहारी के लिए रवाना अमृत भारत एक्सप्रेस खचाखच भरी हुई है। छठ पूजा के मौके पर प्रवासी अपने घर लौट रहे हैं। ट्रेन के स्लीपर कोच में सामान और यात्रियों की भीड़ है। गलियारे बोरे, सूटकेस और प्लास्टिक की बाल्टियों से भरे पड़े हैं। हर कोच में यात्रियों की संख्या क्षमता से अधिक है।
एक डिब्बे में 15 वयस्क और सात बच्चे आठ सीटें साझा कर रहे हैं। फर्श और बर्थ बैग और नई खरीदी गई चीजों से भरे हैं। इनमें मिक्सी, डिनर सेट और कंबल जैसे उपहार शामिल हैं। कुछ यात्रियों के पास रात भर खड़े रहने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। फिर भी उनके चेहरे पर खुशी साफ दिख रही है।
बिहार की ट्रेनों में टिकट का संकट
ट्रेन के चलते ही यात्री बिहार की ट्रेनों में टिकट मिलने की कठिनाई पर चर्चा शुरू कर देते हैं। यह समस्या सिर्फ छठ के दौरान ही नहीं बल्कि पूरे साल बनी रहती है। चर्चा जल्दी ही ट्रेनों की गंदगी की ओर मुड़ जाती है। एक यात्री व्यंग्य करते हुए कहता है कि बिहारियों को ट्रेन में भर दो, वे उसे गंदा कर देंगे।
इन चुटकुलों में अहंकार नहीं बल्कि शर्म की भावना छिपी है। इस हंसी के पीछे पलायन का साझा दर्द छुपा हुआ है। यही शब्द आधुनिक बिहार को परिभाषित करता है। अब यह राज्य की राजनीति को भी आकार दे रहा है।
पलायन बनी बड़ी समस्या
ट्रेन के एक कोच में रमेश साह और रविकांत पंडित जमीन पर बैठे हैं। दोनों पचास साल के हैं और मोतिहारी के चिरैया से हैं। वे हरियाणा में काम करते हैं और त्योहार के लिए घर जा रहे हैं। रमेश सवाल करते हैं कि सरकार ने उनके लिए क्या किया है। वे कहते हैं कि अगर सरकार ने कुछ किया होता तो वे इस तरह नहीं बैठे होते।
रविकांत पंडित सहमति जताते हुए कहते हैं कि बिहार में सब कुछ ठीक है। बस पलायन ही बड़ी समस्या है। उनका मानना है कि किसी भी पार्टी ने इसे हल नहीं किया है। वे योगी आदित्यनाथ जैसे नेता की कामना करते हैं जो जो कहता है वही करता है।
बिहारी होने पर होता है अपमान
शारीरिक कष्ट से भी ज्यादा भारी बात बिहारी होने के कारण अपमान का सामना करना है। मोतिहारी के मुकेश साह गलियारे में बैठे हैं। वे कहते हैं कि दिल्ली में उन्हें चार लोगों के साथ छोटे कमरे में रहना पड़ता है। अपने गांव में वे अपनी भैंसें भी उतनी जगह पर नहीं बांधते।
मुकेश बताते हैं कि बिहारी शब्द का इस्तेमाल गाली की तरह किया जाता है। फिर भी वे अपने परिवारों के लिए इसे सहन करते हैं। जब कोई बुलेट ट्रेन का जिक्र करता है तो मुकेश हंसते हुए कहते हैं कि वे तो अभी भी गलियारे में ही बैठे रहेंगे।
रोजगार के लिए पलायन जरूरी
पानीपत से लौट रहे बेतिया के चित्रकार ब्यास साह और लव कुमार बताते हैं कि उनके गांव में रोजगार के अवसर नहीं हैं। लव कुमार कहते हैं कि वे भाजपा को वोट देंगे क्योंकि शायद इससे मदद मिलेगी। ब्यास साह प्रशांत किशोर के भाषणों से प्रभावित हैं। वे यूट्यूब पर उनके भाषण देखते हैं।
संगमरमर पॉलिश करने वाले मोहम्मद जहांगीर और साहेब आलम पश्चिमी चंपारण से हैं। दोनों 2014 से बिहार से बाहर काम कर रहे हैं। जहांगीर कहते हैं कि घर पर कोई नौकरी नहीं है। उनके छह भाई हैं जो सभी अलग-अलग शहरों में रहते हैं।
चुनावी मुद्दों पर यात्रियों की राय
सीतामढ़ी के रवि झा कहते हैं कि उनका परिवार हर बार भाजपा को वोट देता है। लेकिन इस बार वे राजद को वोट देंगे। इसकी वजह उम्मीदवार की जाति है। भाजपा प्रत्याशी तेली जाति से हैं जबकि राजद प्रत्याशी राजपूत हैं।
रामनगर के राम अवतार पासवान भाजपा का समर्थन करते हैं। वे कहते हैं कि भाजपा दबंग पार्टी है। बगहा के इमानुल हुसैन इस पर हंसते हैं। वे राजद को समर्थन दे रहे हैं। इमानुल का मानना है कि सत्ता से वोट नहीं मिलते बल्कि पैसे से मिलते हैं।
छठ के लिए सब कुछ सहने को तैयार
ट्रेन के सभी यात्री छठ पूजा के लिए घर पहुंचने को उत्सुक हैं। हर कठिनाई को वे खुशी से सह रहे हैं। एक यात्री कहता है कि यह कोई समस्या नहीं है। वे कहीं न कहीं एडजस्ट हो जाएंगे। आखिरकार यह छठ है जो उनके लिए सबसे महत्वपूर्ण है।
यात्रा के दौरान जाति और धर्म की बाधाएं भी टूटती दिखती हैं। यात्री एक दूसरे के साथ खाना साझा करते हैं। वे अपने अनुभव बांटते हैं। रात भर ट्रेन चलती रहती है और यात्री अपने घरों की ओर बढ़ते रहते हैं।
