शुक्रवार, दिसम्बर 19, 2025

छठ पर्व विशेष: जानें सूर्य देव के तीन टुकड़े कैसे हुए और कहां बने प्रसिद्ध मंदिर

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India News: छठ पर्व के अवसर पर देशभर में सूर्य देव की आराधना का विशेष महत्व है। इस पर्व पर व्रती महिलाएं सूर्य को अर्घ्य देकर अपनी मनोकामनाएं पूरी करती हैं। ब्रह्मवैवर्त पुराण में सूर्य देव से जुड़ी एक चमत्कारिक कथा मिलती है। इसी पौराणिक घटना के आधार पर देश में तीन प्रमुख सूर्य मंदिरों का निर्माण हुआ है। यह कहानी भगवान शिव और सूर्य देव के बीच हुए युद्ध से संबंधित है।

रावण के नाना सुमाली की कहानी

पौराणिक कथा के अनुसार रावण के नाना सुमाली ने भगवान शिव से अपनी सुरक्षा का वरदान प्राप्त किया था। इस वरदान के मिलते ही सुमाली अत्यंत बलवान हो गया। एक समय ऐसा आया जब उसने पूरी सृष्टि का विनाश करने का निश्चय किया। सुमाली ने आकाश की ओर बढ़ना शुरू कर दिया और सीधे सूर्य देव के समक्ष पहुंच गया।

सूर्य देव ने सुमाली को रोकने के लिए उस पर प्रहार किया। सूर्य के तेज और शक्ति के सामने सुमाली टिक नहीं पा रहा था। इस स्थिति में उसने भगवान शिव को सहायता के लिए पुकारा। वरदान देने के कारण भगवान शिव को सुमाली की रक्षा के लिए आना पड़ा। इस प्रकार सूर्य देव और भगवान शिव का आमना-सामना हुआ।

शिव और सूर्य देव के बीच युद्ध

भगवान शिव ने सुमाली की रक्षा के लिए सूर्य देव से युद्ध करना स्वीकार किया। यह युद्ध अत्यंत भीषण रूप ले चुका था। युद्ध के दौरान भगवान शिव ने क्रोध में आकर सूर्य देव पर अपना त्रिशूल फेंक दिया। शिव के त्रिशूल के प्रहार से सूर्य देव के तीन टुकड़े हो गए।

त्रिशूल के प्रहार से सूर्य देव बेहोश हो गए। इस दृश्य को देखकर सूर्य देव के पिता महर्षि कश्यप अत्यंत क्रोधित हुए। उन्होंने भगवान शिव को श्राप दे दिया। इस श्राप के अनुसार भगवान शिव को भविष्य में अपने ही पुत्र पर त्रिशूल से प्रहार करना पड़ेगा।

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श्राप का परिणाम

महर्षि कश्यप के श्राप का प्रभाव भगवान शिव पर अवश्य हुआ। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इसी श्राप के कारण भगवान शिव ने अपने पुत्र गणेश पर त्रिशूल से वार किया था। यह घटना हमें शिव पुराण और ब्रह्मवैवर्त पुराण में देखने को मिलती है। इस प्रकार सूर्य देव और भगवान शिव के बीच हुए संघर्ष ने एक महत्वपूर्ण मोड़ लिया।

सूर्य देव के तीन टुकड़े होने की इस घटना का विशेष महत्व है। मान्यता है कि जिन स्थानों पर सूर्य देव के ये टुकड़े गिरे, वहां बाद में प्रसिद्ध मंदिरों का निर्माण हुआ। ये तीनों मंदिर आज भी भारत में सूर्य उपासना के प्रमुख केंद्र के रूप में विद्यमान हैं।

कोणार्क सूर्य मंदिर

सूर्य देव के पहले टुकड़े के गिरने के स्थान पर कोणार्क सूर्य मंदिर का निर्माण हुआ। यह मंदिर ओडिशा राज्य में स्थित है। कोणार्क मंदिर अपनी विशिष्ट वास्तुकला के लिए विश्व प्रसिद्ध है। इस मंदिर को UNESCO द्वारा विश्व धरोहर स्थल का दर्जा प्राप्त है। मंदिर का निर्माण तेरहवीं शताब्दी में कराया गया था।

कोणार्क मंदिर का डिजाइन एक विशाल रथ के समान है। मंदिर में सूर्य देव की मूर्ति को सात घोड़ों वाले रथ में बैठे हुए दर्शाया गया है। इस मंदिर की वास्तुकला और शिल्पकला अद्भुत है। प्रतिवर्ष हजारों श्रद्धालु और पर्यटक इस मंदिर के दर्शन के लिए आते हैं।

देवार्क सूर्य मंदिर

सूर्य देव के दूसरे टुकड़े के गिरने के स्थान पर देवार्क सूर्य मंदिर का निर्माण हुआ। यह मंदिर बिहार राज्य के औरंगाबाद जिले में स्थित है। देवार्क मंदिर को छठ पर्व के लिए विशेष महत्व प्राप्त है। इस मंदिर का उल्लेख प्राचीन हिंदू ग्रंथों में भी मिलता है।

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देवार्क मंदिर का निर्माण कार्य भी कोणार्क मंदिर के समान ही शिल्प कौशल को प्रदर्शित करता है। मंदिर परिसर में सूर्य देव की काले पत्थर से निर्मित मूर्ति स्थापित है। छठ पर्व के अवसर पर यहां लाखों श्रद्धालु एकत्रित होते हैं। वे सूर्य देव को अर्घ्य देकर अपनी मनोकामनाएं पूरी करते हैं।

लोलार्क सूर्य मंदिर

सूर्य देव के तीसरे टुकड़े के गिरने के स्थान पर लोलार्क सूर्य मंदिर का निर्माण हुआ। यह मंदिर उत्तर प्रदेश राज्य में वाराणसी के निकट स्थित है। लोलार्क मंदिर हिंदू धर्म के सबसे पवित्र तीर्थ स्थलों में से एक माना जाता है। इस मंदिर का historical और धार्मिक महत्व अत्यधिक है।

लोलार्क मंदिर में सूर्य देव की विशेष पूजा का विधान है। मान्यता है कि इस मंदिर में पूजा करने से संतान प्राप्ति की इच्छा पूरी होती है। प्रतिवर्ष लाखों श्रद्धालु इस मंदिर में दर्शन के लिए आते हैं। छठ पर्व के समय इस मंदिर की शोभा देखने लायक होती है।

पौराणिक कथा का महत्व

यह पौराणिक कथा हमें हिंदू धर्म के ग्रंथों की गहराई का ज्ञान कराती है। ब्रह्मवैवर्त पुराण में वर्णित इस कथा का उल्लेख अन्य धार्मिक ग्रंथों में भी मिलता है। कथा के अनुसार सूर्य देव के तीन टुकड़े होने की घटना ने तीन प्रमुख मंदिरों को जन्म दिया। ये मंदिर आज भी हिंदू धर्म में विश्वास रखने वालों की आस्था के केंद्र हैं।

छठ पर्व के अवसर पर इन तीनों मंदिरों का विशेष महत्व बढ़ जाता है। श्रद्धालु इन मंदिरों में जाकर सूर्य देव की विशेष पूजा-अर्चना करते हैं। वे सूर्य देव को जल और दूध का अर्घ्य देकर अपनी कृतज्ञता व्यक्त करते हैं। इस पर्व पर इन मंदिरों में भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है।

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