शुक्रवार, दिसम्बर 19, 2025

धोखाधड़ी का चेक: भेड़ खरीदार को कोर्ट ने दोषी ठहराया, मिली सजा

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Himachal News: मंडी के एक न्यायालय ने भेड़ खरीदार नरोत्तम को परक्राम्य लिखत अधिनियम की धारा 138 के तहत दोषी करार दिया है। उसने गोविंद राम को 50,000 रुपये का चेक दिया था जो धनराशि न होने के कारण बाउंस हो गया। शिकायतकर्ता ने वैधानिक नोटिस भेजा लेकिन भुगतान नहीं मिला। आरोपी ने दावा किया कि पूरी राशि नकद दी गई थी और चेक सुरक्षा के लिए था। लेकिन वह इसका सबूत नहीं दे पाया। न्यायालय ने आठ दिसंबर 2023 को आंशिक भुगतान को भी अपराध के सबूत के रूप में माना।

मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत ने फैसला सुनाया कि चेक जारी करना और हस्ताक्षर स्वीकार होना वैधानिक दायित्व बनाता है। धारा 118(ए) और 139 के तहत यह माना जाता है कि चेक वसूली के लिए ही जारी किया गया था। प्रतिवादी इस कानूनी उपधारणा को खंडित करने में विफल रहा। उसने नोटिस का जवाब नहीं दिया और न ही कोई रसीद या गवाह पेश किया। अदालत ने सुरक्षा चेक के दावे को भी खारिज कर दिया।

गोविंद राम ने बताया कि नरोत्तम ने 29 भेड़ें 1.5 लाख रुपये में खरीदी थीं। सौदे में एक लाख रुपये नकद दिए गए और बाकी 50,000 रुपये के लिए चेक दिया गया। यह चेक हिमाचल प्रदेश ग्रामीण बैंक की कटौला शाखा से 24 अगस्त 2020 के लिए जारी किया गया था। चेक जब प्रस्तुत किया गया तो अपर्याप्त धनराशि के कारण लौट आया। इसके बाद शिकायतकर्ता ने कानूनी प्रक्रिया शुरू की।

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23 सितंबर 2020 को गोविंद राम ने रजिस्टर्ड डाक के जरिए वैधानिक नोटिस भेजा। यह नोटिस 26 सितंबर को प्रतिवादी को प्राप्त हुआ। कानून के मुताबिक 15 दिनों के भीतर भुगतान नहीं मिला तो शिकायत दायर की जा सकती है। नरोत्तम ने कोई जवाब नहीं दिया। इसके बाद छह नवंबर 2020 को मंडी की अदालत में आपराधिक शिकायत दायर की गई। मामले की सुनवाई पांच साल तक चली।

बचाव पक्ष ने अदालत में दावा किया कि भेड़ों की पूरी राशि नकद चुकाई जा चुकी है। उन्होंने कहा कि चेक केवल सुरक्षा के तौर पर दिया गया था जिसका दुरुपयोग किया गया। लेकिन नकद भुगतान की कोई रसीद नहीं दिखाई गई। न ही इस संबंध में कोई गवाह पेश किया गया। अदालत ने माना कि बचाव पक्ष के पास अपने दावों का कोई ठोस सबूत नहीं है। इसलिए उसके तर्क स्वीकार नहीं किए जा सकते।

न्यायालय ने चेक बाउंस के मामले में कानूनी प्रक्रिया का पालन होना जरूरी माना। शिकायतकर्ता ने चेक की वापसी की मेमो, नोटिस की डाक रसीद और स्वीकार पत्र पेश किए। उसने शपथ पत्र के जरिए सभी तथ्यों की पुष्टि की। अदालत ने इन सबूतों को विस्तार से जांचा और उन्हें प्रामाणिक पाया। दूसरी ओर आरोपी की ओर से कोई दस्तावेज या गवाह नहीं आया।

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आठ दिसंबर 2023 को नरोत्तम ने अदालत में 10,000 रुपये जमा कराए। अदालत ने इसे अपराध की पुष्टि करने वाला कदम माना। कोर्ट ने कहा कि अगर पूरी राशि नकद चुकाई गई होती तो आंशिक भुगतान की कोई जरूरत नहीं थी। यह कदम आरोपी के अपने दावों के विपरीत था। दोषसिद्धि के बाद आरोपी ने बाकी 50,000 रुपये की राशि शिकायतकर्ता को लौटा दी।

सजा सुनाने के दौरान न्यायालय ने उदारता दिखाई। गोविंद राम ने आरोपी के खिलाफ कठोर कार्रवाई न करने का अनुरोध किया। इस पर कोर्ट ने जेल की सजा के बजाय मात्र 100 रुपये जुर्माना लगाया। दोषी ने यह जुर्माना तुरंत जमा कर दिया। इस तरह पांच साल तक चले मुकदमे का अंत हुआ। चेक बाउंस के मामले में यह फैसला कानून की स्पष्ट व्याख्या करता है।

यह मामला दिखाता है कि चेक जारी करने वाले की कानूनी जिम्मेदारी बनती है। अदालतें चेक को वैधानिक दस्तावेज मानती हैं। बिना सबूत के सुरक्षा चेक का दावा स्वीकार नहीं किया जाता। व्यापारिक लेनदेन में चेक का उपयोग सावधानी से करना चाहिए। भुगतान न होने की स्थिति में कानूनी प्रक्रिया का पालन जरूरी है। इससे ऐसे विवादों से बचा जा सकता है।

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