India News: अपीलीय ट्रिब्यूनल ने आईसीआईसीआई बैंक की पूर्व सीईओ चंदा कोचर को वीडियोकॉन ग्रुप को 300 करोड़ रुपये का लोन देने के बदले 64 करोड़ रुपये की रिश्वत लेने का दोषी पाया। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने 78 करोड़ की संपत्ति जब्त की थी। ट्रिब्यूनल ने 3 जुलाई के आदेश में 2020 के फैसले को पलट दिया। चंदा कोचर ने हितों के टकराव को छुपाया। यह लेनदेन ‘कुछ के बदले कुछ’ का मामला है।
वीडियोकॉन लोन का मामला
चंदा कोचर ने 2009 में वीडियोकॉन ग्रुप को 300 करोड़ रुपये का लोन मंजूर किया। ट्रिब्यूनल के अनुसार, यह लोन बैंक की नीतियों के खिलाफ था। चंदा ने अपने पति दीपक कोचर और वीडियोकॉन के बीच कारोबारी रिश्तों का खुलासा नहीं किया। यह हितों का टकराव था। ईडी ने कहा कि लोन मंजूरी के बाद वीडियोकॉन ने दीपक की कंपनी को फायदा पहुंचाया। ट्रिब्यूनल ने इसे भ्रष्टाचार का स्पष्ट मामला माना।
रिश्वत का लेनदेन
लोन मंजूरी के एक दिन बाद वीडियोकॉन की कंपनी सुप्रीम एनर्जी से 64 करोड़ रुपये दीपक कोचर की कंपनी न्यूपावर रिन्यूएबल्स को ट्रांसफर हुए। कागजों पर यह कंपनी वेणुगोपाल धूत की थी, लेकिन नियंत्रण दीपक कोचर के पास था। ट्रिब्यूनल ने इसे रिश्वत माना। चंदा कोचर ने लोन कमेटी में रहते हुए नियम तोड़े। ईडी ने 78 करोड़ की संपत्ति जब्त की, जिसमें मुंबई का एक फ्लैट भी शामिल है।
2020 का फैसला पलटा
2020 में एक अथॉरिटी ने चंदा कोचर और सहयोगियों की 78 करोड़ की संपत्ति रिलीज करने का आदेश दिया था। ट्रिब्यूनल ने इसे गलत ठहराया। उसने कहा कि अथॉरिटी ने महत्वपूर्ण सबूतों को नजरअंदाज किया। ईडी के दस्तावेज और गवाहों के बयानों को ट्रिब्यूनल ने विश्वसनीय माना। चंदा कोचर के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप सिद्ध हुए। संपत्ति जब्ती को सही ठहराते हुए ट्रिब्यूनल ने ईडी के कदम का समर्थन किया।
