Delhi News: केंद्र सरकार बुधवार को लोकसभा में तीन महत्वपूर्ण विधेयक पेश कर रही है। इनका मकसद उन नेताओं को उनके पद से हटाने का रास्ता साफ करना है, जो गंभीर आपराधिक मामलों में गिरफ्तार होते हैं या न्यायिक हिरासत में लिए जाते हैं। इस सूची में प्रधानमंत्री, केंद्रीय मंत्री, मुख्यमंत्री और राज्य मंत्री सभी शामिल हैं। वर्तमान में ऐसा कोई कानूनी प्रावधान मौजूद नहीं है।
इन विधेयकों को पेश करने का प्रमुख कारण मौजूदा कानूनी खामियों को दूर करना बताया जा रहा है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह इन विधेयकों को संसद की संयुक्त समिति के पास भेजने का प्रस्ताव भी रखेंगे। इस कदम को सरकार की कथित तौर पर भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त रुख अपनाने की दिशा में एक बड़ी पहल माना जा रहा है।
प्रस्तावित विधेयकों की रूपरेखा
तीनों विधेयकों में अलग-अलग कानूनों में संशोधन का प्रस्ताव है। पहला विधेयक केंद्र शासित प्रदेश अधिनियम, 1963 में संशोधन करेगा। दूसरा विधेयक भारतीय संविधान में संशोधन का प्रस्ताव रखता है। तीसरा विधेयक जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 में बदलाव के लिए है। हर विधेयक एक विशिष्ट क्षेत्र को टारगेट करता है।
30 दिन की हिरासत के बाद स्वतः पदमुक्ति
नए प्रावधानों के मुताबिक, अगर किसी मंत्री को पांच साल या उससे ज्यादा सजा वाले अपराध के आरोप में लगातार 30 दिनों तक हिरासत में रखा जाता है, तो उसे पद से हटाया जा सकेगा। हिरासत के 31वें दिन वह व्यक्ति स्वतः ही मंत्री पद से मुक्त माना जाएगा। यह नियम प्रधानमंत्री सहित सभी स्तरों के मंत्रियों पर समान रूप से लागू होगा।
संवैधानिक नैतिकता और जनता के विश्वास पर जोर
विधेयकों के उद्देश्यों में कहा गया है कि निर्वाचित नेता जनता की आशाओं के प्रतीक होते हैं। उनसे उच्च आचार्मिक मानकों की अपेक्षा की जाती है। गंभीर आपराधिक मामलों में हिरासत में लिए गए मंत्री सुशासन के सिद्धांतों को बाधित कर सकते हैं। इससे जनता के विश्वास को ठेस पहुंचती है। इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए ये कदम उठाया जा रहा है।
सरकार का मानना है कि यह कदम पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करेगा। यह प्रावधान देश की राजनीतिक व्यवस्था में एक बड़ा बदलाव ला सकता है। अब देखना यह है कि संसद में इन विधेयकों पर कैसी बहस होती है और विपक्ष इनपर क्या रुख अपनाता है। यह मामला संवैधानिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है।
