India News: चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल अनिल चौहान ने एक महत्वपूर्ण बयान दिया है। उन्होंने कहा कि 1962 के भारत-चीन युद्ध में यदि भारतीय वायुसेना का उपयोग किया गया होता तो स्थिति अलग होती। चीनी हमले को काफी हद तक रोका जा सकता था। यह टिप्पणी उन्होंने पुणे में एक कार्यक्रम के दौरान वीडियो संदेश में की।
जनरल चौहान ने यह बात लेफ्टिनेंट जनरल एसपीपी थोराट की संशोधित आत्मकला ‘रेवेली टू रिट्रीट’ के विमोचन समारोह में कही। उन्होंने कहा कि उस समय वायुसेना के इस्तेमाल को एक आक्रामक कदम माना जाता था। इसीलिए इसके उपयोग पर विचार नहीं किया गया। लेकिन अब समय बदल गया है।
उन्होंने हाल में हुए ऑपरेशन सिंदूर का उदाहरण दिया। इस ऑपरेशन ने रणनीति में बदलाव को दर्शाया है। आज की सैन्य रणनीति पहले से कहीं अधिक समन्वित और सशक्त है। वायुसेना अब रक्षा तैयारियों का एक अभिन्न अंग है।
जनरल चौहान ने 1962 की ‘फॉरवर्ड पॉलिसी’ पर भी प्रकाश डाला। उनका मानना है कि लद्दाख और नॉर्थ-ईस्ट फ्रंटियर एजेंसी में इस नीति को एक जैसा लागू करना गलत था। ये दोनों क्षेत्र भौगोलिक और सामरिक दृष्टि से एकदम अलग हैं।
उन्होंने समझाया कि इन दोनों मोर्चों की चुनौतियाँ भिन्न थीं। इसलिए दोनों जगह एक समान रणनीति सफल नहीं हो सकती थी। इस ऐतिहासिक विश्लेषण से भविष्य की रणनीति के लिए महत्वपूर्ण सबक मिलते हैं। यह बातें सैन्य इतिहास में गहन चर्चा का विषय रही हैं।
इस ऐतिहासिक आकलन को वर्तमान संदर्भ में देखा जा रहा है। भारत ने पिछले कुछ वर्षों में अपनी रक्षा क्षमताओं में बड़ा सुधार किया है। विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसे विश्लेषण भविष्य की नीतियों को आकार देने में मदद करते हैं।
यह घटना देश के सैन्य इतिहास पर नए सिरे से बहस छेड़ सकती है। जनरल चौहान के बयान से 1962 के युद्ध के कई पहलुओं पर फिर से विचार होगा। यह विश्लेषण भारत की वर्तमान सुरक्षा चुनौतियों के लिए प्रासंगिक माना जा रहा है।
