Himachal News: मंडी जिले के बालीचौकी निवासी अनुसूचित जाति के सूरजमणि ने पुलिस अधीक्षक को शिकायत भेजी है। सोशल मीडिया पर वायरल निजी वीडियो से उन्हें जातिगत गालियां और जान से मारने की धमकियां मिल रही हैं। उन्होंने बीएनएस, आईटी एक्ट और एससी/एसटी एक्ट की धाराओं के तहत एफआईआर दर्ज करने की मांग की है। यह मामला हिमाचल प्रदेश में बढ़ते जातिगत अत्याचारों की पृष्ठभूमि में आया है।
वायरल वीडियो का मामला
सूरजमणि ने बताया कि कुछ दिनों पहले उनकी एक घरेलू बातचीत का वीडियो बिना इजाजत फेसबुक पर अपलोड हो गया। इस वीडियो में देवी-देवताओं पर कोई आपत्तिजनक टिप्पणी नहीं थी। फिर भी कुछ लोग इसे बार-बार शेयर कर रहे हैं। इससे सूरजमणि को जातिसूचक शब्दों वाली गालियां और धमकियां मिलीं। ये धमकियां फेसबुक पोस्ट, फोटो और वीडियो के जरिए फैल रही हैं।
सूरजमणि को मानसिक तनाव हो गया है। उनका घर से बाहर निकलना मुश्किल हो गया। लोग अफवाहें फैला रहे हैं। हिमाचल प्रदेश भर में उनकी बदनामी हुई। पुलिस अधीक्षक को दिए पत्र में उन्होंने जांच की मांग की। उन्होंने कहा कि आरोपी की पहचान सोशल मीडिया से हो जाएगी।
अनधिकृत कॉल रिकॉर्डिंग की शिकायत
फेसबुक यूजर “बंटी सराजी बलदेव ठाकुर” ने सूरजमणि को फोन किया। उसने बिना बताए कॉल रिकॉर्ड की। बाद में इसे सोशल मीडिया पर वायरल कर दिया। सूरजमणि ने इसे गोपनीयता का उल्लंघन बताया। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के 2017 के पुट्टास्वामी फैसले का हवाला दिया। यह फैसला अनधिकृत रिकॉर्डिंग को अपराध मानता है।
सूरजमणि ने कहा कि यह उनके संवैधानिक अधिकार अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है। जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का हक छिन गया। उन्होंने आरोपी पर आईटी एक्ट की धाराओं के तहत कार्रवाई की मांग की।
झूठी शिकायतों से प्रताड़ना
“बंटी सराजी बलदेव ठाकुर” और “तुलेश ठाकुर” ने सूरजमणि के खिलाफ झूठी शिकायतें दर्ज कराईं। ये शिकायतें पुलिस अधीक्षक कार्यालय और जंजैहली थाने में दी गईं। सूरजमणि का कहना है कि ये जातिगत द्वेष से प्रेरित हैं। इससे उनकी आजीविका और सामाजिक स्थिति बिगड़ रही है।
उन्होंने एससी/एसटी एक्ट की धारा 3(1)(v) का जिक्र किया। यह धारा झूठी सूचना देने पर सजा का प्रावधान करती है। सूरजमणि ने पुलिस से इन शिकायतों पर कार्रवाई की अपील की।
लागू कानूनी धाराएं
शिकायत में बीएनएस की धारा 351 का उल्लेख है। यह आपराधिक धमकी को कवर करती है। धारा 356 मानहानि के लिए है। आईटी एक्ट की धारा 66 अनधिकृत कंप्यूटर गतिविधि बताती है। धारा 67 आपत्तिजनक सामग्री के प्रसारण पर लागू होती है।
एससी/एसटी एक्ट की धारा 3(1)(r) सार्वजनिक अपमान को दंडित करती है। धारा 3(1)(u) घृणा फैलाने पर सजा देती है। आईटी एक्ट की धारा 72A गोपनीय सूचना उजागर करने पर दो साल की कैद का प्रावधान रखती है। धारा 43A डेटा दुरुपयोग पर मुआवजा सुनिश्चित करती है।
बीएनएस धारा 223 झूठी सूचना देने पर कार्रवाई का आधार है। सूरजमणि ने इन सभी धाराओं के तहत एफआईआर की मांग की।
आरोपी पर कार्रवाई की मांग
सूरजमणि ने आरोपी की गिरफ्तारी और पूछताछ की अपील की। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म से सामग्री हटाने के निर्देश देने को कहा। पुलिस सुरक्षा की भी गुजारिश की। उन्होंने स्क्रीनशॉट और वीडियो लिंक देने की पेशकश की।
हिमाचल में बढ़ते जातिगत मामले
हिमाचल प्रदेश में एससी/एसटी एक्ट के तहत मामले बढ़ रहे हैं। 2024 में राज्य में 213 केस दर्ज हुए। मंडी जिले में ही 42 मामले थे। शिमला में 27 और कांगड़ा में 22 केस आए।
हाल ही में रोहड़ू में जातिगत भेदभाव का मामला सुर्खियों में रहा। एक 12 वर्षीय दलित बालक की मौत ने अस्पृश्यता पर बहस छेड़ दी। कांगड़ा में एक दलित महिला के साथ बलात्कार और हत्या ने विरोध प्रदर्शन कराए। सीपीआई(एम) ने दलितों के लिए न्याय की मांग की।
हाईकोर्ट ने कई मामलों में सख्त रुख अपनाया। अक्टूबर 2025 में एक महिला को एंटीसिपेटरी बेल से वंचित किया गया। वह एक एससी बच्चे को छूने पर पीटने का आरोपी थी। जुलाई 2025 में एक डिस्चार्ज ऑर्डर रद्द किया गया। कोर्ट ने कहा कि जाति जन्म से तय होती है। बदलती नहीं।
ये घटनाएं दिखाती हैं कि हिमाचल में जातिगत अत्याचार अभी भी चुनौती हैं। सूरजमणि का मामला इसी कड़ी का हिस्सा लगता है।
