National News: भारतीय अर्थव्यवस्था ने वैश्विक मुद्रा प्रणाली में एक बड़ी छलांग लगाई है। भारत ने अब BRICS देशों के साथ सभी व्यापारिक लेनदेन सीधे भारतीय रुपये में करने की मंजूरी दे दी है। यह ऐतिहासिक निर्णय दशकों से अमेरिकी डॉलर के वर्चस्व को सीधी चुनौती देता है। इस कदम से भारत की आर्थिक संप्रभुता मजबूत होने और डॉलर पर निर्भरता घटने की उम्मीद है।
डॉलर के वर्चस्व को चुनौती
वर्तमान में अंतरराष्ट्रीय व्यापार का एक बड़ा हिस्सा अमेरिकी डॉलर में होता है। पेट्रोलियम उत्पादों का लगभग पूरा व्यापार डॉलर में ही संपन्न होता था। परन्तु 2023 के बाद से इस स्थिति में बदलाव आने लगा है। अब लगभग 20% तेल व्यापार गैर-अमेरिकी मुद्राओं में होने लगा है। यह प्रवृत्ति डॉलर के प्रभुत्व के लिए एक बड़ा खतरा बन सकती है।
आरबीआई के नए दिशा-निर्देश
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण परिपत्र जारी किया है। इसके तहत अब भारतीय बैंकों को विदेशी बैंकों के साथ वोस्ट्रो खाते खोलने के लिए पूर्व अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं है। इस सरलीकरण से अंतरराष्ट्रीय लेनदेन में रुपये के उपयोग को बहुत बढ़ावा मिलेगा। यह कदम डॉलर के बजाय रुपये में सीधे व्यापार को सुगम बनाएगा।
वोस्ट्रो खातों की भूमिका
एक वोस्ट्रो खाता वह होता है जो किसी विदेशी बैंक द्वारा किसी देश के स्थानीय बैंक में रखा जाता है। इसका उद्देश्य स्थानीय मुद्रा में लेनदेन को सुविधाजनक बनाना है। उदाहरण के लिए, एक अमेरिकी बैंक का भारत में वोस्ट्रो खाता उसे सीधे रुपये में लेनदेन करने की अनुमति देगा। इससे आयात-निर्यात की प्रक्रिया अधिक कुशल हो जाएगी।
एक रणनीतिक प्रतिक्रिया
इस नीति को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारत पर लगाए गए उच्च टैरिफ के संदर्भ में भी देखा जा रहा है। कई विश्लेषक इसे अमेरिकी नीतियों के प्रति एक रणनीतिक जवाब मानते हैं। BRICS राष्ट्रों का संयुक्त आर्थिक और जनसांख्यिकीय भार इस निर्णय को और अधिक शक्तिशाली बनाता है।
भारतीय रुपये को मिलेगा बढ़ावा
इस निर्णय का सबसे बड़ा प्रभाव भारतीय रुपये की अंतरराष्ट्रीय स्थिति पर पड़ेगा। रुपये में अंतरराष्ट्रीय व्यापार बढ़ने से मुद्रा विनिमय दर में अधिक स्थिरता आएगी। इससे देश के विदेशी मुद्रा भंडार को मजबूत करने में भी मदद मिलेगी। यह भारत की दीर्घकालिक आर्थिक सुरक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है।
