Balochistan News: फिल्म ‘धुरंधर’ ने बलूचिस्तान को एक बार फिर चर्चा में ला दिया है। यह फिल्म कराची के इलाके ल्यारी की पृष्ठभूमि पर बनी है। पर दरअसल, बॉलीवुड के पर्दे के पीछे बलूचिस्तान का योगदान बहुत पुराना है। इस इलाके ने हिंदी सिनेमा को कई यादगार हस्तियां दी हैं।
सुरेश ओबेरॉय का जन्म 1946 में क्वेटा में हुआ था। उनका परिवार बाद में भारत आ गया। ओबेरॉय ने रेडियो और मॉडलिंग से अपना सफर शुरू किया। बॉलीवुड में उन्होंने 135 से अधिक फिल्मों में काम किया। वह पुलिस अधिकारी, पिता और मेंटर के रोल में याद किए जाते हैं।
कादर खान ने बॉलीवुड की भाषा को नया रूप दिया। उनका जन्म काबुल में हुआ था और परिवार की जड़ें बलूचिस्तान के पिशिन से जुड़ी थीं। वह पहले एक प्रोफेसर थे। उन्होंने 1973 की फिल्म ‘दाग’ से एक्टिंग की दुनिया में कदम रखा।
कादर खान का योगदान
कादर खान ने300 से अधिक फिल्मों में अभिनय किया। उन्होंने 250 से ज्यादा फिल्मों के संवाद भी लिखे। उन्हें कई फिल्मफेयर पुरस्कार और पद्मश्री से सम्मानित किया गया। उनके लिखे संवाद आज भी लोगों की जुबान पर हैं।
अमजद खान को शोले में गब्बर सिंह की भूमिका के लिए हमेशा याद किया जाएगा। उनका जन्म 1940 में क्वेटा में हुआ था। उन्होंने 130 से अधिक फिल्मों में काम किया। उनकी आवाज और अभिनय ने हिंदी सिनेमा के खलनायकों को नई परिभाषा दी।
राज कुमार और उनकी विशिष्ट शैली
राज कुमार काजन्म 1926 में लोरलाई में हुआ था। उनका वास्तविक नाम कुलभूषण पंडित था। वह पहले मुंबई पुलिस में थे। उन्होंने अपनी शानदार आवाज और संवाद अदायगी से दर्शकों का दिल जीता। उनकी उपस्थिति हमेशा प्रभावशाली रहती थी।
वीना कुमारी का जन्म भी क्वेटा में हुआ था। वह 1940 और 1950 के दशक की मशहूर अभिनेत्री थीं। उन्होंने हिंदी और उर्दू दोनों तरह की फिल्मों में काम किया। उनके अभिनय की शालीनता और गहराई ने दर्शकों को प्रभावित किया।
ज़ेबा बख्तियार का सीमाओं के पार प्रभाव
ज़ेबाबख्तियार पाकिस्तान की मशहूर अभिनेत्री और निर्माता हैं। उनके पूर्वज बलूचिस्तान से ताल्लुक रखते हैं। उन्हें भारत में फिल्म ‘हिना’ से पहचान मिली। उन्होंने पाकिस्तानी टेलीविजन पर भी कई लोकप्रिय धारावाहिकों में काम किया।
ये सभी कलाकार हिंदी सिनेमा का अभिन्न हिस्सा बन गए। उन्होंने अपने अभिनय, संवाद और व्यक्तित्व से बॉलीवुड को समृद्ध किया। इनकी विरासत फिल्म इतिहास में हमेशा जीवित रहेगी। बलूचिस्तान का सांस्कृतिक प्रभाव इनके काम में साफ दिखाई देता था।
