शुक्रवार, दिसम्बर 19, 2025

पुतिन के भारत दौरे के बाद बड़ा झटका: पश्चिम तैयार कर रहा है रूसी तेल निर्यात पर पूर्ण प्रतिबंध

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International News: रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की भारत यात्रा खत्म होते ही पश्चिमी देशों ने उनके लिए एक बड़ा झटका तैयार किया है। जी7 और यूरोपीय संघ रूस के तेल निर्यात पर समुद्री सेवाओं का पूर्ण प्रतिबंध लगाने पर विचार कर रहे हैं। यह कदम रूस की युद्ध अर्थव्यवस्था को सीधे निशाने पर लेगा। रूसी केंद्रीय बजट का एक चौथाई हिस्सा तेल निर्यात से आता है। यह प्रतिबंध वर्तमान कीमत सीमा व्यवस्था को खत्म कर देगा।

यह प्रस्तावित प्रतिबंध पूरी तरह नया है। यह रूसी तेल ले जाने वाले किसी भी जहाज को पश्चिमी सेवाएं देने पर रोक लगाएगा। इसमें टैंकरों की आपूर्ति, बीमा और पंजीकरण सेवाएं शामिल हैं। यह कदम रूस के एशियाई बाजारों को विशेष रूप से निशाना बना सकता है। भारत और चीन को रूसी तेल का निर्यात अभी भी पश्चिमी जहाजों से होता है।

रूस पर प्रतिबंधों का यह नया दौर 2022 में शुरू हुए युद्ध की प्रतिक्रिया है। उस समय पश्चिमी देशों ने रूसी तेल आयात पर प्रतिबंध लगा दिया था। हालांकि उन्होंने पूर्ण प्रतिबंध के बजाय एक चालाक रणनीति अपनाई। उन्होंने रूसी तेल की कीमत सीमा निर्धारित कर दी। इस व्यवस्था के तहत रूसी तेल साठ डॉलर प्रति बैरल से कम कीमत पर बेचने पर ही पश्चिमी सेवाएं उपलब्ध थीं।

रूस ने कीमत सीमा को किया चकमा

समय के साथ रूस ने इस व्यवस्था को चकमा देने का रास्ता ढूंढ लिया। मॉस्को ने एक छाया बेड़ा विकसित कर लिया है। यह पुराने और कम निगरानी वाले टैंकरों का एक जाल है। ये जहाज अक्सर अस्पष्ट स्वामित्व के तहत चलते हैं। अक्टूबर तक रूस ने अपना चौवालीस प्रतिशत तेल इसी छाया बेड़े के जरिए निर्यात किया।

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इसके बावजूद रूस अभी भी पश्चिमी सेवाओं पर निर्भर है। रूसी तेल निर्यात का अड़तीस प्रतिशत हिस्सा जी7 और यूरोपीय संघ के टैंकरों से जाता है। नया प्रस्ताव इसे रोक देगा। इससे रूस को अपना छाया बेड़ा और बढ़ाना पड़ सकता है। फिलहाल यह बेड़ा चौदह सौ तेईस टैंकरों का है।

प्रतिबंध लागू होने पर क्या होगा?

प्रस्तावित प्रतिबंध रूस के लिए एक बड़ी चुनौती बन सकता है। रूस को मजबूरन अपने छाया बेड़े पर और अधिक निर्भर होना पड़ेगा। इससे उसकी निर्यात लागत बढ़ सकती है। साथ ही तेल बेचने की उसकी क्षमता प्रभावित हो सकती है। पश्चिमी सरकारों का लक्ष्य रूस की युद्धकालीन आय को कम करना है।

इस कदम से वैश्विक तेल बाजार में उथल-पुथल की आशंका है। हालांकि पश्चिमी देश बाजार स्थिरता बनाए रखना चाहते हैं। वे रूस की आय कम करना चाहते हैं पर बाजार में झटका नहीं देना चाहते। यह एक नाजुक संतुलन बनाने की कोशिश है।

यूरोपीय संघ ला सकता है अगला प्रतिबंध पैकेज

यूरोपीय संघ इस प्रस्ताव को अपने अगले प्रतिबंध पैकेज में शामिल कर सकता है। यह पैकेज 2026 की शुरुआत में आ सकता है। लेकिन इसके लिए जी7 देशों की सहमति जरूरी है। ब्रिटेन और अमेरिका इस प्रयास का नेतृत्व कर रहे हैं। यूरोपीय आयोग चाहता है कि यह फैसला सामूहिक हो।

अंतिम निर्णय काफी हद तक अमेरिकी रुख पर निर्भर करेगा। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का प्रशासन इस मुद्दे पर अनिश्चित है। ट्रंप प्रशासन ने पहले भी कीमत सीमा को सख्त करने में कम रुचि दिखाई है। उसने सितंबर में कीमत सीमा घटाने के प्रस्ताव का समर्थन नहीं किया था।

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रूस की अर्थव्यवस्था पर होगा गहरा असर

तेल निर्यात रूसी अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। यह देश के केंद्रीय बजट का एक बड़ा हिस्सा जुटाता है। प्रतिबंध से रूस को अपने तेल को बाजार तक पहुंचाने में कठिनाई होगी। इससे उसकी आय में कमी आ सकती है। यह कमी उसकी युद्ध को चलाने की क्षमता को प्रभावित करेगी।

रूस ने पहले ही अपने तेल व्यापार का रुख एशिया की ओर मोड़ दिया है। भारत और चीन उसके प्रमुख ग्राहक बन गए हैं। नया प्रतिबंध इस मार्ग को भी चुनौती दे सकता है। क्योंकि भारत और चीन को जाने वाले कई टैंकर पश्चिमी सेवाओं का उपयोग करते हैं।

अगले कदमों पर निगरानी

सभी पक्ष अगले कुछ महीनों में होने वाली बातचीत पर नजर गड़ाए हुए हैं। जी7 देशों के बीच तकनीकी स्तर की चर्चा जारी है। यूरोपीय संघ इंतजार कर रहा है कि कब औपचारिक प्रस्ताव पेश किया जाए। रूस अपनी तैयारी जारी रखे हुए है।

यह प्रतिबंध 2022 के बाद से रूसी तेल पर सबसे कड़ा कदम साबित हो सकता है। इसका असर वैश्विक ऊर्जा बाजार और भूराजनीति पर पड़ेगा। दुनिया इस नए विकास के नतीजे देखने को बेताब है। आने वाले समय में स्थिति और स्पष्ट होगी।

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