Uttar Pradesh News: उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले में एक निजी अस्पताल पर दिल दहलाने वाला आरोप लगा है। परिजनों का दावा है कि अस्पताल ने मृत नवजात शिशु का 22 दिन तक इलाज दिखाकर करीब ढाई लाख रुपये वसूल लिए। बच्चे की हालत बिगड़ने पर परिवार ने रेफर करने की गुहार लगाई, लेकिन अस्पताल ने पैसे की मांग की। इस बस्ती अस्पताल घोटाले ने लोगों को झकझोर दिया है।
परिवार की पीड़ा: सब कुछ दांव पर लगा
परिजनों के अनुसार, नवजात गंभीर रूप से बीमार था। उसे बस्ती के एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया। शुरू में आयुष्मान भारत कार्ड से इलाज शुरू हुआ, लेकिन बाद में अस्पताल ने नकद भुगतान की मांग की। परिवार ने बच्चे को बचाने के लिए अपनी जमीन गिरवी रखी और मां के गहने तक बेच दिए। फिर भी, बच्चे की जान नहीं बची। परिजनों का कहना है कि अस्पताल ने उनकी मजबूरी का फायदा उठाया।
मृत बच्चे का इलाज: अस्पताल की लापरवाही
परिजनों ने आरोप लगाया कि बच्चे की मौत के बाद भी अस्पताल ने उसे आईसीयू में रखा। 22 दिन तक इलाज का नाटक कर लाखों रुपये वसूले गए। परिवार ने बार-बार बेहतर अस्पताल में रेफर करने की मांग की, लेकिन डॉक्टरों ने उनकी एक न सुनी। परिजनों का कहना है कि अगर समय पर रेफर किया जाता, तो शायद बच्चा बच जाता। इस बस्ती अस्पताल घोटाले ने चिकित्सा नैतिकता पर सवाल उठाए हैं।
प्रशासन का रुख: जांच के आदेश
बस्ती के मुख्य चिकित्सा अधिकारी राजीव निगम ने मामले को गंभीर बताया। उन्होंने कहा कि शिकायत मिलने पर एक जांच टीम गठित की जाएगी। दोषी पाए जाने पर कड़ी कार्रवाई का आश्वासन दिया गया है। हालांकि, परिवार का कहना है कि अस्पताल ने आयुष्मान कार्ड का दुरुपयोग किया और नकद पैसे वसूले। यह घटना चिकित्सा व्यवस्था में पारदर्शिता और निगरानी की कमी को उजागर करती है।
सवालों के घेरे में अस्पताल प्रबंधन
इस मामले ने कई सवाल खड़े किए हैं। अगर बच्चे की मौत हो चुकी थी, तो इलाज क्यों जारी रखा गया? आयुष्मान योजना के बावजूद नकद भुगतान की मांग क्यों की गई? अस्पतालों में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए कोई मॉनिटरिंग सिस्टम क्यों नहीं है? परिजनों का दर्द और गुस्सा जायज है। अब सभी की नजर प्रशासन की जांच पर टिकी है, जो इस बस्ती अस्पताल घोटाले की सच्चाई उजागर करेगी।
