Barren Island News: अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के बैरन द्वीप पर इस महीने दो बार ज्वालामुखी विस्फोट दर्ज किए गए हैं। यह विस्फोट 13 और 20 सितंबर को हुए। अधिकारियों ने इनकी जानकारी सोमवार को सार्वजनिक की। भारत का यह एकमात्र सक्रिय ज्वालामुखी फिर से चर्चा में है। विस्फोट के वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहे हैं। हालांकि, इन्हें मामूली बताया जा रहा है और स्थानीय लोगों के जीवन पर इसका कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ा है।
बैरन दीप भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण द्वारा लगातार निगरानी में रहता है। यह द्वीप पोर्ट ब्लेयर से लगभग 140 किलोमीटर उत्तर-पूर्व में स्थित है। यह क्षेत्र भूवैज्ञानिक दृष्टि से अत्यंत सक्रिय माना जाता है। दोनों विस्फोटों के बीच महज आठ दिन का अंतर था। इसने वैज्ञानिकों का ध्यान फिर से इस ओर खींचा है। वे ज्वालामुखी की गतिविधियों के पैटर्न को समझने में जुटे हुए हैं।
पहला विस्फोट 13 सितंबर को हुआ था। इसमें ज्वालामुखी से राख और गैसों का हल्का उत्सर्जन देखा गया। इसी तरह का एक और विस्फोट 20 सितंबर को दर्ज किया गया। दोनों ही घटनाएं स्ट्रॉम्बोलियन प्रकार की थीं। इस प्रकार के विस्फोटों में लावा, राख और ज्वालामुखीय बम बाहर फेंके जाते हैं। लेकिन ये बहुत बड़े पैमाने पर नहीं होते हैं।
हालांकि विस्फोट छोटे थे, लेकिन स्थानीय प्रशासन ने सतर्कता बरतने की सलाह जारी की है। पर्यटकों और मछुआरों को द्वीप के आस-पास के क्षेत्र में सावधानी बरतने को कहा गया है। विस्फोट के बाद निकलने वाली राख और गैसें स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकती हैं। सांस लेने में तकलीफ और आंखों में जलन जैसी समस्याएं हो सकती हैं।
विस्फोट के बाद के दृश्य काफी प्रभावशाली थे। आसमान में राख और धुएं का गुबार उठा। ज्वालामुखी से निकला लावा भी रात के अंधेरे में चमकता दिखाई दिया। यह दृश्य दूर से ही देखे जा सकते थे। सोशल मीडिया पर शेयर किए गए वीडियो में यह सब साफ देखा जा सकता है। इन वीडियोज ने लोगों में इस घटना के प्रति उत्सुकता पैदा की है।
बैरन द्वीप ज्वालामुखी का इतिहास
बैरन द्वीप ज्वालामुखी का पहला रिकॉर्डेड विस्फोट 1787 में हुआ था। तब से यह समय-समय पर सक्रिय होता रहा है। आधुनिक समय में 1991 में यह फिर से फटा था और तब से इसमें लगातार गतिविधि देखी जा रही है। यह द्वीप लगभग 3 किलोमीटर के क्षेत्र में फैला है। इस ज्वालामुखी की ऊंचाई समुद्र तल से करीब 354 मीटर है। यह पूरी तरह से निर्जन द्वीप है और यहां कोई मानव आबादी नहीं है।
वैज्ञानिकों के लिए बैरन द्वीप एक प्राकृतिक प्रयोगशाला के समान है। यहां की गतिविधियों का अध्ययन करके वे ज्वालामुखी विज्ञान को बेहतर ढंग से समझते हैं। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओशनोग्राफी जैसे संस्थान इस पर नजर रखते हैं। उपग्रहों और अन्य उन्नत तकनीकों की मदद से निगरानी की जाती है। इससे किसी बड़े खतरे की आशंका होने पर पहले ही चेतावनी जारी की जा सकती है।
पर्यावरण पर प्रभाव
इस तरह के छोटे विस्फोटों का पर्यावरण पर तत्काल और व्यापक प्रभाव नहीं होता। हालांकि, राख के कण वायु गुणवत्ता को प्रभावित कर सकते हैं। ज्वालामुखीय गैसें वातावरण में मिल सकती हैं। समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र पर भी इसका असर पड़ता है। आसपास का समुद्री जल अम्लीय हो सकता है। इससे समुद्री जीवन प्रभावित हो सकता है, लेकिन यह प्रभाव आमतौर पर स्थानीय स्तर तक सीमित रहता है।
इन विस्फोटों का पर्यटन पर कोई बड़ा नकारात्मक असर नहीं पड़ने की उम्मीद है। अंडमान और निकोबार द्वीप समूह एक प्रमुख पर्यटन स्थल है। बैरन द्वीप तक जाने के लिए विशेष अनुमति की आवश्यकता होती है। पर्यटक नाव से दूर से ही ज्वालामुखी के दर्शन कर सकते हैं। यह दृश्य पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। हाल के विस्फोटों ने इसके प्रति रुचि और बढ़ा दी है।
भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण विभाग ने बताया कि निगरानी जारी है। अभी और बड़े विस्फोट की कोई आशंका नहीं है। स्थिति सामान्य बनी हुई है। हवा का रुख भी राख को बस्तियों की ओर ले जाने वाला नहीं है। इसलिए चिंता की कोई बात नहीं है। सभी संबंधित एजेंसियां स्थिति पर नजर बनाए हुए हैं। आवश्यकता पड़ने पर तुरंत कदम उठाए जा सकते हैं।
