International News: बांग्लादेश सरकार को भारतीय चावल दुबई के रास्ते महंगे दाम पर खरीदना पड़ रहा है। देश के खाद्य विभाग ने इसकी पुष्टि की है। विशेषज्ञों ने इस प्रक्रिया पर सवाल उठाए हैं। उनका मानना है कि यह धन की बर्बादी है। भारत से सीधे चावल आयात न करने के फैसले पर हैरानी जताई जा रही है।
बांग्लादेश सरकार ने म्यांमार और दुबई से कुल एक लाख टन चावल खरीदने की मंजूरी दी है। इसकी कुल लागत 323 करोड़ रुपये से अधिक होगी। दुबई से आयात किया जाने वाला चावल वास्तव में भारतीय मूल का है। इससे द्विपक्षीय संबंधों में आई खटास का पता चलता है।
व्यापार घाटे का हवाला
बांग्लादेश के एक अधिकारी ने भारत से सीधे आयात न करने का कारण बताया। उन्होंने भारत के साथ व्यापार घाटे का हवाला दिया। सीधे आयात को बायपास करने से व्यापार असंतुलन को बिगड़ने से रोकने में मदद मिलती है। यह नीति द्विपक्षीय संबंधों में आए तनाव के कारण अपनाई जा रही है।
बांग्लादेश की वित्त मंत्रालय ने आधिकारिक बयान जारी किया। इसमें कहा गया कि 50,000 टन पारबॉयल्ड चावल म्यांमार से आयात किया जाएगा। शेष 50,000 टन नॉन-बासमती पारबॉयल्ड चावल दुबई से मंगाया जाएगा। दोनों सौदों की कुल लागत 323 करोड़ रुपये है।
चावल खरीद की विस्तृत योजना
वित्तीय वर्ष 2025-26 के तहत बांग्लादेश सरकार ने पैकेज-2 के तहत अंतरराष्ट्रीय खुली निविदा को मंजूरी दी। इसके तहत 50,000 टन नॉन-बासमती पारबॉयल्ड चावल आयात किया जाएगा। चावल दुबई स्थित कंपनी क्रेडेंट वन एफजेडई से खरीदा जाएगा। कीमत प्रति टन 355.99 अमेरिकी डॉलर तय हुई है।
म्यांमार से 50,000 टन पारबॉयल्ड चावल सरकार से सरकार के आधार पर आयात किया जाएगा। इसकी कीमत प्रति टन 376.50 अमेरिकी डॉलर रखी गई है। दुबई से आयात किया जाने वाला चावल भारतीय मूल का होगा। दुबई ज्यादातर चावल भारत से ही आयात करता है।
दुबई का री-एक्सपोर्ट व्यवसाय
दुबई अपना लगभग पूरा चावल आयात करता है। इसमें अधिकांश हिस्सा भारत से आता है। जेबेल अली बंदरगाह एक प्रमुख पुनर्निर्यात केंद्र के रूप में कार्य करता है। यह अफ्रीका और मध्य पूर्व के देशों को चावल की आपूर्ति करता है। क्रेडेंट वन एफजेडई जैसी कंपनियां भारतीय चावल की बड़ी आयातक हैं।
ये कंपनियां भारतीय बासमती और नॉन-बासमती चावल का बड़े पैमाने पर आयात करती हैं। फिर इसे अन्य देशों को निर्यात कर देती हैं। बांग्लादेश इन्हीं कंपनियों से भारतीय चावल खरीद रहा है। इस प्रक्रिया में अतिरिक्त लागत आ रही है।
राजनीतिक संबंधों में खटास
मोहम्मद यूनुस के बांग्लादेश की सरकार प्रमुख बनने के बाद से द्विपक्षीय संबंधों में तनाव आया है। इसके बाद भारत ने बांग्लादेश के खिलाफ कई कड़े कदम उठाए हैं। चावल आयात की यह समस्या राजनीतिक तनाव का परिणाम है। दोनों देशों के बीच व्यापार प्रभावित हुआ है।
बांग्लादेश के विशेषज्ञ इस स्थिति पर चिंता जता रहे हैं। उनका मानना है कि यह आर्थिक रूप से व्यवहार्य नहीं है। सीधे भारत से चावल आयात करना कहीं अधिक सस्ता होगा। लेकिन राजनीतिक कारणों से ऐसा नहीं किया जा रहा है।
आर्थिक प्रभाव
इस निर्णय का सीधा असर बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा। दुबई से चावल आयात करने में परिवहन लागत बढ़ जाती है। मध्यस्थ कंपनियों का लाभ भी शामिल होता है। इससे चावल की कीमत में वृद्धि होती है। अंततः इसका बोझ उपभोक्ताओं पर पड़ता है।
बांग्लादेश सरकार को चावल की आपूर्ति बनाए रखनी है। देश की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करनी है। लेकिन यह तरीका आर्थिक दृष्टि से कुशल नहीं माना जा रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि इससे देश के संसाधनों का दुरुपयोग हो रहा है।
