शुक्रवार, दिसम्बर 19, 2025

महिला डॉक्टर पर हमला: ठाणे कोर्ट ने दोषी को सात साल की सजा सुनाई

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Maharashtra News: ठाणे की एक अदालत ने एक महिला डॉक्टर पर हमला करने और उन्हें लूटने के मामले में आरोपी को सात साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई है। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश वसुधा भोसले ने यह फैसला सुनाते हुए इसे डॉक्टरों के खिलाफ होने वाली हिंसा के विरुद्ध एक सख्त संदेश बताया। इस घटना ने चिकित्सा पेशेवरों की सुरक्षा को लेकर एक गंभीर सवाल खड़ा कर दिया है।

यह घटना कोरोना महामारी के दौरान तीन जनवरी 2021 की है। आरोपी राशिद शकील खान ठाणे के भायंदर इलाके में डॉ. गायत्री नंदलाल जायसवाल के क्लिनिक में आरटी-पीसीआर जांच के बारे में पूछताछ करने पहुंचा था। अभियोजन पक्ष के मुताबिक आरोपी को इंतजार करने के लिए कहा गया जिस पर वह नाराज होकर वहां से चला गया।

कुछ ही देर बाद वह वापस क्लिनिक में आया और उसने डॉक्टर पर अचानक हमला कर दिया। खान ने डॉक्टर के सिर पर लोहे के हथौड़े से कई बार जोरदार वार किए। इस हमले में डॉक्टर गंभीर रूप से घायल हो गईं और खून से लथपथ हो गईं।

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घायल डॉक्टर की हालत का फायदा उठाते हुए आरोपी ने उनकी सोने की चेन, एक अंगूठी, मोबाइल फोन और पांच हजार रुपये नकद लूट लिए। इसके बाद वह मौके से फरार हो गया। पुलिस ने मामले की त्वरित सुनवाई कर आरोपी को गिरफ्तार कर लिया।

अदालत ने आरोपी को भारतीय दंड संहिता की प्रासंगिक धाराओं के साथ-सा�ं चिकित्सा पेशेवरों एवं चिकित्सा संस्थानों के खिलाफ हिंसा की रोकथाम अधिनियम, 2019 के तहत दोषी ठहराया। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि पीड़ित डॉक्टर को आई चोटें गंभीर चोट की श्रेणी में आती हैं।

सजा का समाज पर प्रभाव

अदालत ने अपने फैसले में कहा कि अपराध की गंभीरता को देखते हुए एक उदाहरणात्मक सजा देना आवश्यक था। इससे पीड़िता को न्याय मिलेगा और समाज में यह संदेश जाएगा कि डॉक्टरों के विरुद्ध हिंसा को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। यह फैसला भविष्य में ऐसे अपराधों को रोकने में मददगार साबित हो सकता है।

अदालत ने आरोपी पर 20,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया है। न्यायालय ने निर्देश दिया कि जुर्माने की राशि में से 10,000 रुपये पीड़ित डॉक्टर को दिए जाएं। इस मामले में अभियोजन पक्ष की ओर से 14 गवाहों ने अपने बयान दिए थे।

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इस मामले ने चिकित्सा समुदाय में सुरक्षा को लेकर चिंताओं को फिर से उजागर किया है। जब अस्पताल और क्लिनिक जैसी जगहें भी सुरक्षित नहीं रह जातीं तो समाज की स्थिति पर सवाल उठना स्वाभाविक है। यह घटना स्वास्थ्यकर्मियों के लिए एक बड़ा खतरा पैदा करती है।

कानूनी प्रक्रिया और सबूत

अभियोजन पक्ष ने आरोपी के खिलाफ मामला पुख्ता तरीके से पेश किया। सभी सबूतों और गवाहों के बयानों के आधार पर आरोपी का दोष साबित हुआ। अदालत ने सभी पहलुओं पर गौर करने के बाद ही यह सजा सुनाई। इस फैसले से कानून के शासन को मजबूती मिली है।

महामारी के दौरान डॉक्टरों ने अपनी जान जोखिम में डालकर लोगों की सेवा की थी। ऐसे में उन पर हमला समाज के लिए शर्मनाक है। यह फैसला एक सकारात्मक कदम है और भविष्य में ऐसी घटनाओं पर अंकुश लगा सकता है। डॉक्टर समुदाय ने इस फैसले का स्वागत किया है।

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