Mumbai News: प्रसिद्ध पार्श्वगायिका आशा भोसले को बॉम्बे हाई कोर्ट से बड़ी राहत मिली है। कोर्ट ने उनके व्यक्तित्व अधिकारों के हनन पर अंतरिम रोक लगा दी है। यह मामला आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस टूल्स के माध्यम से सेलिब्रिटी की आवाज के दुरुपयोग से जुड़ा है। कोर्ट ने कहा कि बिना अनुमति किसी की आवाज को बदलना व्यक्तित्व अधिकारों का उल्लंघन है।
जस्टिस आरिफ एस. डॉक्टर ने यह अहम फैसला सुनाया। उन्होंने कहा कि पहली नजर में सेलिब्रिटी के नाम, तस्वीर या आवाज का बिना अनुमति इस्तेमाल गलत है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि एआई टूल्स द्वारा आवाज में बदलाव करना भी व्यक्तित्व अधिकारों का हनन माना जाएगा। इससे सेलिब्रिटी की पहचान और छवि को नुकसान पहुंचता है।
आशा भोसले के आरोप
91 वर्षीय गायिका ने अपनी याचिका में कई आरोप लगाए। उन्होंने अमेरिका स्थित एआई प्लेटफॉर्म माइक इंक पर आवाज के क्लोन वर्जन बनाने का आरोप लगाया। उन्होंने कुछ ई-कॉमर्स कंपनियों पर भी आरोप लगाए। अमेजन और फ्लिपकार्ट पर बिना अनुमति उनकी तस्वीरों के व्यावसायिक उपयोग का आरोप है।
आशा भोसले ने कोर्ट में कहा कि ऐसी गतिविधियों से उनके सम्मान को ठेस पहुंचती है। इससे उनकी कमाई और बौद्धिक संपदा अधिकार भी प्रभावित होते हैं। उन्होंने कोर्ट से बिना अनुमति उपयोग पर रोक लगाने का अनुरोध किया था। कोर्ट ने उनके इस अनुरोध को स्वीकार कर लिया।
कोर्ट का अंतरिम आदेश
बॉम्बे हाई कोर्ट ने सभी संबंधित कंपनियों को निर्देश दिए हैं। उन्हें आशा भोसले की आवाज, नाम और छवि के बिना अनुमति उपयोग से रोक दिया गया है। कोर्ट ने ऐश्वर्या राय बच्चन और अरिजीत सिंह के मामलों का हवाला दिया। पहले भी कोर्ट ने ऐसे मामलों में सेलिब्रिटी के अधिकारों को मान्यता दी है।
कोर्ट ने कहा कि व्यक्तित्व अधिकार किसी व्यक्ति की पहचान से जुड़े होते हैं। इनका बिना अनुमति व्यावसायिक उपयोग गलत है। यह निर्णय भारत में व्यक्तित्व अधिकारों और एआई प्रौद्योगिकी के संदर्भ में महत्वपूर्ण माना जा रहा है। इससे भविष्य में ऐसे मामलों में मार्गदर्शन मिलेगा।
मामले की अगली सुनवाई
इस मामले की अगली सुनवाई 13 अक्टूबर 2025 को होगी। इस बीच सभी पक्षों पर अंतरिम आदेश लागू रहेगा। माना जा रहा है कि इस केस का अंतिम फैसला एक महत्वपूर्ण नजीर बनेगा। यह टेक्नोलॉजी और सेलिब्रिटी अधिकारों के बीच संतुलन स्थापित करेगा।
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि एआई टूल्स द्वारा आवाज में परिवर्तन गंभीर मामला है। इससे सार्वजनिक छवि को नुकसान पहुंचता है। सेलिब्रिटी की निजी पहचान भी प्रभावित होती है। यह फैसला डिजिटल युग में व्यक्तित्व अधिकारों की सुरक्षा की दिशा में महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।
