शुक्रवार, दिसम्बर 19, 2025

Army Power During War: क्या सेना आपकी संपत्ति पर कब्जा कर सकती है? जानें कानून और नागरिक अधिकार

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New Delhi News: युद्ध या आपातकाल की स्थिति में भारतीय सेना को नागरिक संपत्ति का उपयोग करने का अधिकार है। यह अधिकार डिफेंस ऑफ इंडिया एक्ट और इसके तहत बने नियमों से मिलता है। सेना जमीन, इमारतें या वाहन अस्थायी रूप से अपने कब्जे में ले सकती है। हालांकि यह कब्जा कानूनी सीमाओं के भीतर और मुआवजे के साथ होता है।

संपत्ति का उपयोग सिर्फ उतने समय तक के लिए हो सकता है जब तक आपात स्थिति बनी रहे। स्थिति सामान्य होते ही संपत्ति मालिक को वापस करनी होती है। सेना बिना मुआवजा दिए किसी की संपत्ति नहीं ले सकती। नागरिकों के पास अदालत में चुनौती देने का अधिकार भी है।

डिफेंस ऑफ इंडिया एक्ट के प्रावधान

डिफेंस ऑफ इंडिया एक्ट और डिफेंस ऑफ इंडिया रूल्स सेना को विशेष अधिकार देते हैं। ये कानून युद्ध या आपातकाल में लागू होते हैं। सेना कैंप बनाने, गोला-बारूद रखने या इमारतों का उपयोग कर सकती है। इसके लिए उचित मुआवजा देना अनिवार्य है।

संपत्ति का कब्जा अस्थायी होना चाहिए। स्थायी रूप से संपत्ति लेने के लिए अधिग्रहण की प्रक्रिया अपनानी पड़ती है। सेना के अधिकारी बिना लिखित आदर के संपत्ति नहीं ले सकते। हर कार्रवाई का रिकॉर्ड रखना जरूरी होता है।

एएफएसपीए का दायरा

आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पावर्स एक्ट यानी एएफएसपीए कुछ विशेष इलाकों में लागू होता है। इस कानून के तहत अशांत क्षेत्र घोषित इलाकों में सेना को अतिरिक्त शक्तियां मिलती हैं। सेना संदिग्ध संपत्ति को सील या नष्ट कर सकती है। तलाशी लेने का अधिकार भी मिलता है।

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यह कानून पूरे देश में लागू नहीं होता। सिर्फ उन्हीं इलाकों में लागू होता है जहां आतंकी गतिविणियां या हिंसा चल रही हो। एएफएसपीए का उद्देश्य सुरक्षा बलों को विशेष परिस्थितियों में कार्रवाई की स्वतंत्रता देना है। इसके तहत की गई कार्रवाई की न्यायिक समीक्षा भी हो सकती है।

मुआवजे का अधिकार

सेना द्वारा संपत्ति के उपयोग के बदले मालिक को उचित मुआवजा देना अनिवार्य है। मुआवजे की राशि संपत्ति के मूल्य और उपयोग की अवधि पर निर्भर करती है। सरकार को मुआवजे की व्यवस्था करनी पड़ती है। बिना मुआवजे के संपत्ति लेना कानूनन गलत है।

निजी वाहन, ट्रक, मशीनरी या खेतों के उपयोग के लिए भी मुआवजा दिया जाता है। संपत्ति को नुकसान होने पर मरम्मत का खर्च भी देना पड़ता है। मालिक को मुआवजे के लिए आवेदन करने का अधिकार है। विवाद की स्थिति में अदालत का दरवाजा खटखटाया जा सकता है।

अदालत में चुनौती का अधिकार

यदि किसी व्यक्ति को लगता है कि उसकी संपत्ति गलत तरीके से ली गई है तो वह अदालत जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट दोनों में याचिका दायर की जा सकती है। अदालतें राष्ट्रीय सुरक्षा और नागरिक अधिकारों के बीच संतुलन बनाती हैं। सेना की कार्रवाई का औचित्य जांचा जा सकता है।

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अदालतों ने कई बार कहा है कि आपात स्थिति में भी नागरिक अधिकारों का ध्यान रखना जरूरी है। सेना को मनमाने ढंग से कार्रवाई का अधिकार नहीं है। हर कार्रवाई कानून के दायरे में होनी चाहिए। नागरिकों को न्याय पाने का पूरा अधिकार है।

संपत्ति कब्जे की प्रक्रिया

सेना द्वारा संपत्ति कब्जे की एक निश्चित प्रक्रिया होती है। पहले संपत्ति की जरूरत का आकलन किया जाता है। फिर लिखित आदेश जारी किए जाते हैं। संपत्ति मालिक को सूचना दी जाती है। मुआवजे का प्रस्ताव रखा जाता है।

संपत्ति का उपयोग शुरू करने से पहले दस्तावेज तैयार किए जाते हैं। संपत्ति की स्थिति का रिकॉर्ड बनाया जाता है। कब्जे की अवधि स्पष्ट रूप से बताई जाती है। आपात स्थिति खत्म होते ही संपत्ति वापस की जाती है।

राष्ट्रीय सुरक्षा बनाम नागरिक अधिकार

राष्ट्रीय सुरक्षा और नागरिक अधिकारों के बीच संतुलन बनाना जरूरी है। सेना को देश की रक्षा के लिए जरूरी संसाधन चाहिए। साथ ही नागरिकों के मौलिक अधिकारों का भी ध्यान रखना होता है। कानून इस संतुलन को बनाए रखने की कोशिश करता है।

आपात स्थिति में नागरिकों का सहयोग जरूरी होता है। सेना संपत्ति का उपयोग सिर्फ जरूरत पड़ने पर करती है। मुआवजे की उचित व्यवस्था से नागरिकों के हित सुरक्षित रहते हैं। देशहित में नागरिक और सेना मिलकर काम कर सकते हैं।

Poonam Sharma
Poonam Sharma
एलएलबी और स्नातक जर्नलिज्म, पत्रकारिता में 11 साल का अनुभव।

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