National News: कथावाचक अनिरुद्धाचार्य एक बार फिर अपने विवादित बयान को लेकर चर्चा में हैं। उन्होंने मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई पर नाराजगी जताई है। यह विवाद खजुराहो स्थित भगवान विष्णु के मंदिर के पुनर्निर्माण मामले में सीजेआई की टिप्पणी के बाद शुरू हुआ। अनिरुद्धाचार्य ने एक वीडियो में कहा कि अधर्मियों को मारने के लिए भगवान आते हैं। इस बयान ने सोशल मीडिया पर तूफान ला दिया है।
अनिरुद्धाचार्य ने सीजेआई की उस टिप्पणी का जिक्र किया जहां न्यायमूर्ति गवई ने कहा था कि भक्त भगवान से स्वयं प्रार्थना कर सकते हैं। कथावाचक ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा कि अगर सब काम भगवान करेंगे तो जज की कुर्सी की क्या जरूरत है। उनके इस बयान के वीडियो यूट्यूब पर तेजी से वायरल हो रहे हैं।
विवाद की पृष्ठभूमि
मामला खजुराहो में भगवान विष्णु की क्षतिग्रस्त मूर्ति के पुनर्निर्माण का है। एक याचिकाकर्ता ने मंदिर के पुनर्निर्माण की मांग की थी। इस पर सुनवाई के दौरान सीजेआई ने यह टिप्पणी की थी। बाद में सीजेआई ने सफाई दी कि उनके बयान को गलत संदर्भ में पेश किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि वह सभी धर्मों का सम्मान करते हैं।
अनिरुद्धाचार्य ने अपने बयान में हिंदू समाज पर भी टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि हिंदू लोग अपने देवताओं का अपमान सह लेते हैं इसलिए मंदिर तोड़े गए। उन्होंने यह भी सवाल किया कि क्या कोई जज किसी अन्य धर्म के खिलाफ ऐसी बयानबाजी कर सकता है। यह टिप्पणी भी विवाद का कारण बनी।
सोशल मीडिया पर प्रतिक्रिया
नेहा सिंह राठौर ने अनिरुद्धाचार्य के बयान को शेयर करते हुए टिप्पणी की। उन्होंने सीधे तौर पर पूछा, ‘इतनी हिम्मत?’ एक सोशल मीडिया यूजर सलमा खान ने लिखा कि सीजेआई को संवैधानिक पद की मर्यादा रखनी चाहिए। उन्होंने कहा कि धर्मों पर टिप्पणी करने से बचना चाहिए।
कुछ यूजर्स ने इस दोहरे मापदंड पर सवाल उठाए। एक यूजर ने लिखा कि अगर कोई विपक्ष का नेता ऐसा बोलता तो अदालत की अवमानना के मामले में जेल में होता। सोशल मीडिया पर यह विवाद गर्माया हुआ है। दोनों पक्षों के समर्थक अपने-अपने तर्क दे रहे हैं।
पिछले विवाद
अनिरुद्धाचार्य पहले भी अपने बयानों को लेकर विवादों में रहे हैं। पिछले दिनों लड़कियों पर दिए गए उनके एक बयान ने बवाल खड़ा कर दिया था। उस समय भी उन्हें सोशल मीडिया पर कड़ी आलोचना का सामना करना पड़ा था। वह अक्सर धार्मिक और सामाजिक मुद्दों पर अपनी राय रखते हैं।
इस नए विवाद ने एक बार फिर उन्हें सुर्खियों में ला दिया है। यह मामला न्यायपालिका और धार्मिक भावनाओं के बीच के संवेदनशील संबंध को उजागर करता है। विशेषज्ञ मानते हैं कि ऐसे मामलों में संयम बरतने की आवश्यकता होती है। दोनों पक्षों के बीच संवाद महत्वपूर्ण है।
