शुक्रवार, दिसम्बर 19, 2025

इलाहाबाद हाई कोर्ट: सतेंद्र कुमार अंतिल केस की गलत व्याख्या से जमानत प्रक्रिया में फैला भ्रम, जानें क्या है पूरा मामला

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Uttar Pradesh News: इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण टिप्पणी की है। अदालत ने कहा कि सतेंद्र कुमार अंतिल मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले की गलत व्याख्या की जाती है। इससे जमानत की कार्रवाई में भ्रम की स्थिति पैदा होती है। न्यायमूर्ति अरुण कुमार सिंह देशवाल की एकल पीठ ने यह बात कही।

अदालत ने फिरोजाबाद निवासी याची कृष्णा उर्फ किशन को जमानत दे दी। याची के खिलाफ गैर इरादतन हत्या के प्रयास का मामला दर्ज था। अदालत ने कहा कि आरोपपत्र पहले ही दायर किया जा चुका है। याची का कोई आपराधिक इतिहास नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले की सही व्याख्या

अदालत नेस्पष्ट किया कि सतेंद्र कुमार अंतिल मामले के निर्देश केवल आरोपपत्र दाखिल होने के बाद लागू होते हैं। यह निर्देश जांच के दौरान दायर जमानत आवेदनों पर लागू नहीं होते। न्यायमूर्ति देशवाल ने इस भ्रम को दूर किया है।

सर्वोच्च न्यायालय ने निचली अदालतों को निर्देश दिया था कि वे सात साल तक की सजा वाले मामलों में आरोपपत्र दाखिल होने के बाद जमानत पर निर्णय लें। यह निर्देश जांच के दौरान दायर जमानत याचिकाओं पर लागू नहीं होता। इस स्पष्टीकरण से कानूनी भ्रम दूर होगा।

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मेडिकल रिपोर्ट में विसंगतियां

मामलेकी सुनवाई के दौरान अदालत को मेडिकल और पुलिस रिपोर्ट में हेराफेरी के संकेत मिले। डॉक्टर अश्वनी कुमार पचौरी ने पीड़ित की चिकित्सा जांच की थी। उन्होंने सीटी स्कैन और एक्स-रे कराने की सलाह दी थी। सीटी स्कैन में सिर में फ्रैक्चर पाया गया।

लगभग एक माह बाद हुए एक्स-रे में फ्रैक्चर नहीं माना गया। डॉक्टर की लापरवाही भरी रिपोर्ट के कारण विवेचना अधिकारी ने धारा 308 के आरोप में चार्जशीट दाखिल की। इस धारा में सात साल से कम की सजा का प्रावधान है। डॉक्टर ने पूरक मेडिकल रिपोर्ट देने से इनकार कर दिया।

पुलिस और डॉक्टर की लापरवाही

अदालत नेकहा कि विवेचना अधिकारी का दायित्व था कि वह इसकी जानकारी सीएमओ और अन्य उच्च अधिकारियों को देते। उन्होंने लापरवाही की और एक्स-रे रिपोर्ट पर चार्जशीट दाखिल कर दी। पुलिस साक्ष्य से छेड़छाड़ करती है जिससे मजिस्ट्रेट के लिए कठिनाई होती है।

आपराधिक न्याय प्रशासन में पुलिस अधिकारियों और डॉक्टर सहित सभी लोकसेवकों को अपनी ड्यूटी सही ढंग से निभानी चाहिए। लापरवाही लोगों का विश्वास कम कर सकती है। इससे संविधान का उद्देश्य विफल हो जाता है। उच्च अधिकारियों की जिम्मेदारी है कि वे अकर्मण्य अधिकारियों को सिस्टम से हटाएं।

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जेटीआरआई को भेजे जाने का निर्देश

अदालत नेअपने आदेश की प्रति ज्युडीशियल ट्रेनिंग एंड रिसर्च इंस्टीट्यूट के निदेशक लखनऊ को भेजने का निर्देश दिया। इससे न्यायिक अधिकारियों को 2022 के फैसले के संबंध में सही जानकारी मिल सकेगी। यह कदम भविष्य में होने वाली गलत व्याख्याओं को रोकने में मदद करेगा।

सत्र अदालत ने अभियुक्त को जमानत देने से इनकार कर दिया था। हाई कोर्ट ने इस निर्णय को पलट दिया। अदालत ने कहा कि पुलिस सुप्रीम कोर्ट के निर्देश का दुरुपयोग करती है। साक्ष्य में छेड़छाड़ की जाती है जिससे न्यायिक प्रक्रिया प्रभावित होती है।

इलाहाबाद हाई कोर्ट का यह फैसला जमानत संबंधी मामलों में महत्वपूर्ण मार्गदर्शन प्रदान करता है। इससे निचली अदालतों को जमानत के मामलों में सही दिशा मिलेगी। कानून की सही व्याख्या से न्यायिक प्रक्रिया और मजबूत होगी।

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