शनिवार, दिसम्बर 20, 2025

गुजारा भत्ता: बिना कारण के पति से अलग रह रही पत्नी गुजारा भत्ता की हकदार नहीं; उच्च न्यायालय

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Uttar Pradesh News: इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने गुजारा भत्ता मामले में महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा कि बिना उचित कारण के पति से अलग रह रही पत्नी गुजारा भत्ता की हकदार नहीं है। विपुल अग्रवाल की याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति सुभाष चंद्र शर्मा ने मेरठ परिवार अदालत के फैसले को रद्द कर दिया। यह फैसला सीआरपीसी की धारा 125(4) के प्रावधानों पर आधारित है।

परिवार अदालत का फैसला रद्द

उच्च न्यायालय ने मेरठ की परिवार अदालत के 17 फरवरी 2025 के आदेश को खारिज कर दिया। कोर्ट ने पाया कि पत्नी यह साबित नहीं कर पाई कि वह उचित कारण से पति से अलग रह रही है। फिर भी, निचली अदालत ने पत्नी को 5,000 रुपये और नाबालिग बच्चे को 3,000 रुपये मासिक गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया था। उच्च न्यायालय ने इसे कानून के खिलाफ माना।

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सीआरपीसी की धारा 125(4) का उल्लेख

न्यायमूर्ति सुभाष चंद्र शर्मा ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 125(4) के तहत, बिना वैध कारण के पति से अलग रहने वाली पत्नी गुजारा भत्ता नहीं पा सकती। याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी कि निचली अदालत ने पति की आय पर विचार नहीं किया। इसके बावजूद, पत्नी के पक्ष में गुजारा भत्ता तय किया गया, जो कानूनी प्रावधानों का उल्लंघन है।

पत्नी की दलील खारिज

पत्नी के वकील ने दावा किया कि वह पति की उपेक्षा के कारण अलग रह रही है। उन्होंने निचली अदालत के फैसले का समर्थन किया। हालांकि, उच्च न्यायालय ने इसे तथ्यों के खिलाफ पाया। कोर्ट ने कहा कि निचली अदालत का फैसला विरोधाभासी है। यह आदेश सीआरपीसी के प्रावधानों का उल्लंघन करता है, इसलिए इसे रद्द करना जरूरी है।

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मामले को परिवार अदालत में पुनर्विचार के लिए भेजा

उच्च न्यायालय ने 8 जुलाई 2025 को अपने फैसले में मामले को फिर से मेरठ परिवार अदालत में भेजा। कोर्ट ने निर्देश दिया कि दोनों पक्षों को सुनवाई का मौका देकर कानून के अनुसार नया फैसला लिया जाए। तब तक, याचिकाकर्ता को पत्नी को 3,000 रुपये और बच्चे को 2,000 रुपये मासिक अंतरिम गुजारा भत्ता देना होगा।

कानूनी प्रक्रिया पर जोर

उच्च न्यायालय ने इस मामले में कानूनी प्रक्रिया का पालन करने पर जोर दिया। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि गुजारा भत्ता तय करने से पहले सभी तथ्यों की गहन जांच जरूरी है। यह फैसला उन मामलों में मिसाल बन सकता है, जहां गुजारा भत्ता संबंधी विवाद सामने आते हैं। सुनवाई के दौरान सभी पक्षों को उचित अवसर मिलना चाहिए।

Poonam Sharma
Poonam Sharma
एलएलबी और स्नातक जर्नलिज्म, पत्रकारिता में 11 साल का अनुभव।

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