Lifestyle News: अक्सर पार्टियों में यह चर्चा होती है कि गहरे रंग की शराब हल्की ड्रिंक्स के मुकाबले ज्यादा नशा देती है। विज्ञान के नजरिए से यह दावा पूरी तरह गलत है। नशे की तीव्रता ड्रिंक के रंग या स्वाद पर निर्भर नहीं करती है। यह केवल इस बात पर तय होता है कि आप कितनी मात्रा में अल्कोहल का सेवन कर रहे हैं। चाहे वह डार्क व्हिस्की हो या पानी जैसी दिखने वाली वोडका।
अल्कोहल की मात्रा ही असली पैमाना
विशेषज्ञों के अनुसार, किसी भी ड्रिंक का नशा उसकी अल्कोहल बाय वॉल्यूम (ABV) मात्रा से तय होता है। अगर व्हिस्की और वोडका दोनों में 40% अल्कोहल है, तो उनका असर शरीर पर एक जैसा ही होगा। शरीर में ब्लड अल्कोहल लेवल बढ़ने पर ही इंसान को नशा महसूस होता है। ड्रिंक का रंग काला हो या सफेद, इससे नशे के स्तर पर कोई फर्क नहीं पड़ता है।
डार्क ड्रिंक्स में क्यों होता है अलग अहसास?
गहरे रंग की शराब में ‘कॉन्जेनर’ (Congeners) नामक रसायन अधिक पाए जाते हैं। ये रसायन फर्मेंटेशन और एजिंग की प्रक्रिया के दौरान बनते हैं। इन्हीं की वजह से ड्रिंक का रंग गहरा होता है और स्वाद तीखा लगता है। हल्की या क्लियर ड्रिंक्स में कॉन्जेनर की मात्रा बहुत कम होती है। डार्क लिकर की तेज खुशबू लोगों को यह सोचने पर मजबूर करती है कि यह ज्यादा स्ट्रॉन्ग है।
हैंगओवर का गहरा कनेक्शन
शोध में पाया गया है कि डार्क लिकर पीने के बाद हैंगओवर ज्यादा बुरा होता है। कॉन्जेनर की अधिकता के कारण अगली सुबह सिरदर्द और थकान ज्यादा महसूस होती है। बॉर्बन, रेड वाइन या डार्क रम पीने वालों को वोडका पीने वालों की तुलना में ज्यादा परेशानी हो सकती है। लोग अक्सर इस भारी हैंगओवर को ही ज्यादा नशा मान लेते हैं, जो कि एक गलतफहमी है। शराब का असली असर केवल उसकी मात्रा पर निर्भर करता है।
