National News: प्रवर्तन निदेशालय ने अल-फलाह समूह के चेयरमैन जवाद अहमद सिद्दीकी को गिरफ्तार किया है। उन पर 415 करोड़ रुपये की ठगी और धन शोधन का आरोप है। अदालत ने उन्हें तेरह दिन की हिरासत में भेज दिया है। यह वही समूह है जिसके फरीदाबाद स्थित मेडिकल कॉलेज से लाल किला विस्फोट मामले का आत्मघाती हमलावर जुड़ा था।
ईडी ने उन्नीस परिसरों पर छापेमारी की थी। इस दौरान अड़तालीस लाख रुपये नकद बरामद किए गए। डिजिटल सबूत और फर्जी अनुबंधों के दस्तावेज भी मिले। संदिग्ध लेनदेन के कई प्रमाण भी एजेंसी को प्राप्त हुए हैं। जांच में कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं।
विश्वविद्यालय का वास्तविक स्वरूप
अल-फलाह विश्वविद्यालय में शिक्षा का कार्य नहीं हो रहा था। यहां डिग्री के बदले धन वसूली की संगठित मशीनरी काम कर रही थी। इसका सीधा संबंध जवाद सिद्दीकी से था। उन्होंने ट्रस्ट, विश्वविद्यालय और शेल कंपनियों का जाल बिछाया था।
इस जाल में छात्रों का भविष्य और अभिभावकों की कमाई फंस गई। सरकारी मानकों की विश्वसनीयता भी प्रभावित हुई। विश्वविद्यालय की यूजीसी मान्यता पर सवाल थे। एनएएसी की स्थिति गलत तरीके से पेश की गई थी। बिना बुनियादी मान्यता के राजस्व में भारी उछाल दिखाया गया।
वित्तीय अनियमितताएं
चार सौ पंद्रह करोड़ रुपये जबरदस्ती और झूठे दावों से वसूले गए। राजस्व चौबीस करोड़ से अस्सी करोड़ तक पहुंच गया था। यह वृद्धि संदेहास्पद परिस्थितियों में हुई। ट्रस्ट की संपत्तियां लगातार बढ़ रही थीं। लेकिन वित्तीय स्थिति आय के मुकाबले नहीं थी।
अल-फलाह ट्रस्ट ने निर्माण और कैटरिंग के ठेके अपने रिश्तेदारों की कंपनियों को दिए। धन शोधन परिवार नियंत्रित शेल कंपनियों के जरिए किया गया। सभी निर्णय जवाद सिद्दीकी द्वारा लिए गए। ट्रस्ट परिवार नियंत्रित धन संग्रहण तंत्र जैसा काम कर रहा था।
राष्ट्रीय सुरक्षा पहलू
इस मामले के गंभीर राष्ट्रीय सुरक्षा निहितार्थ हैं। लाल किला विस्फोट मामले का आत्मघाती हमलावर इसी समूह के अस्पताल में कार्यरत था। यह तथ्य संदेह पैदा करता है कि संस्थान का उपयोग अन्य उद्देश्यों के लिए हो रहा था। अनियंत्रित निजी संस्थान देश की सुरक्षा के लिए जोखिम बन रहे हैं।
जवाद सिद्दीकी के करीबी रिश्तेदार खाड़ी देशों में रहते हैं। उनके विदेशी वित्तीय कनेक्शन हैं। ईडी ने अदालत में कहा कि उनके पास भारत छोड़ने के कई कारण हो सकते हैं। यह स्थिति गंभीर चिंता का विषय है। जांच एजेंसी इस पहलू की गहराई से जांच कर रही है।
ईडी ने कोर्ट में स्पष्ट किया कि जांच प्रारंभिक चरण में है। भविष्य में और तथ्य सामने आ सकते हैं। यह मामला भारत में निजी शिक्षण संस्थानों की कमजोरियों को उजागर करता है। झूठी मान्यता और फर्जी दस्तावेजों का उद्योग चल रहा है। इस पर त्वरित अंकुश लगाने की आवश्यकता है।
