Himachal News: अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का 46वां प्रांत अधिवेशन कांगड़ा के गुप्त गंगा परिसर में संपन्न हुआ। इस अधिवेशन में हिमाचल प्रदेश के वर्तमान परिदृश्य और शैक्षणिक स्थिति पर दो प्रस्ताव पारित किए गए। इन प्रस्तावों में नशे के बढ़ते संकट पर गंभीर चिंता व्यक्त की गई।
प्रांत मंत्री नैंसी अटल ने बताया कि इस अधिवेशन में पूरे प्रदेश से 524 कार्यकर्ताओं ने भाग लिया। इनमें 310 छात्र, 167 छात्राएं और 47 प्राध्यापक शामिल थे। अधिवेशन में वर्ष 2025-26 के लिए नए पदाधिकारियों की घोषणा भी की गई।
नशा मुक्ति पर जोर
अधिवेशन में पारित प्रस्ताव में कहा गया कि नशे का संकट युवाओं के बीच भयावह रूप से फैल चुका है। चिट्टा जैसे सिंथेटिक ड्रग्स ने अनेक परिवारों को तबाह किया है। पुलिस और प्रशासन के प्रयासों के बावजूद यह समस्या लगातार बढ़ रही है।
नशा निवारण बोर्ड में राजनीतिक नियुक्तियों पर सवाल उठाए गए। सेवानिवृत्त अधिकारियों को पुनः नियुक्त करने और मुख्य सचिव जैसे पदों पर अस्थाई नियुक्तियों की आलोचना की गई। धारा 118 के साथ छेड़छाड़ और कानून व्यवस्था के चरमराने को सरकार की बड़ी विफलता बताया गया।
शिक्षा व्यवस्था पर चिंता
अधिवेशन में प्रदेश के शैक्षणिक परिदृश्य पर गंभीर चिंता प्रकट की गई। सरकार पर बिना विचार-विमर्श के छात्र विरोधी निर्णय लेने का आरोप लगाया गया। हर वर्ष एक लाख सरकारी नौकरी देने के आश्वासन को पूरा करने में सरकार के विफल रहने की बात कही गई।
सरकार द्वारा 100 सरकारी स्कूलों में सीबीएसई बोर्ड लागू करने के निर्णय का स्वागत किया गया। लेकिन दूसरी तरफ आए दिन शिक्षण संस्थानों को बंद करने के निर्णय की आलोचना की गई। इससे दूरदराज के क्षेत्रों के विद्यार्थियों को परेशानी हो रही है।
नए पदाधिकारियों की घोषणा
प्रांत अधिवेशन में डॉ राकेश शर्मा को पुनः विद्यार्थी परिषद हिमाचल प्रदेश का अध्यक्ष चुना गया। नैंसी अटल को वर्ष 2025-26 के लिए प्रदेश मंत्री चुना गया। संगठन ने शिक्षण संस्थानों में बढ़ते राजनीतिक हस्तक्षेप पर चिंता जताई।
परिषद ने केंद्रीय विश्वविद्यालय धर्मशाला के निर्माण कार्य के लिए तुरंत धनराशि उपलब्ध करवाने की मांग की। गैस्ट टीचर पॉलिसी को निरस्त कर स्थाई भर्ती की मांग की गई। विश्वविद्यालयों में अनावश्यक राजनीतिक हस्तक्षेप को बंद करने की चेतावनी दी गई।
संगठन ने स्पष्ट किया कि यदि उनकी मांगें नहीं मानी गईं तो वे बड़ा आंदोलन खड़ा करेंगे। इसकी जिम्मेदारी वर्तमान सरकार पर होगी। शिक्षण संस्थानों की स्वायत्तता बहाल करने पर जोर दिया गया।
