Tech News: एआई स्मार्ट चश्मों ने दुनियाभर में निजता को लेकर नई बहस छेड़ दी है। एक तकनीकी विशेषज्ञ ने इन चश्मों के खतरनाक प्रदर्शन को साझा किया है। यह चश्मा सड़क पर चल रहे अजनबी की भी पहचान कर सकता है। यह उनका नाम, पेशा और लिंक्डइन प्रोफाइल तक दिखा देता है। इस खुलासे ने सोशल मीडिया पर गंभीर चिंता पैदा कर दी है।
विशेषज्ञ ने जताई थी आशंका
एआई विशेषज्ञ पास्कल बोर्नेट ने एक सोशल मीडिया पोस्ट में इस तकनीक पर चिंता जताई। उन्होंने लिखा कि निजता अब शायद खत्म हो गई है। नए एआई चश्मे किसी को भी कहीं भी पहचान सकते हैं। उनका मानना है कि यह तकनीक एक बड़ा मोड़ साबित होगी। अब सार्वजनिक स्थान पर होना सिर्फ दिखना नहीं रह गया है। यह पूरी तरह से उजागर होने जैसा होता जा रहा है।
टीवी शो में हुआ था लाइव प्रदर्शन
यह प्रदर्शन डच टेक पत्रकार एलेक्जेंडर क्लोपिंग ने किया था। उन्होंने नीदरलैंड्स के एक टीवी शो में एआई चश्मा पहना। फिर उन्होंने सड़क पर चल रहे लोगों को देखा। चश्मे ने कुछ ही सेकंड में उन लोगों की व्यक्तिगत जानकारी स्क्रीन पर दिखा दी। इसके लिए किसी सरकारी डेटाबेस की मदद नहीं ली गई। सिर्फ सार्वजनिक इंटरनेट डेटा का इस्तेमाल हुआ।
कैसे काम करती है यह तकनीक?
यह तकनीक चेहरे की पहचान और एआई का मेल है। चश्मे में लगा कैमरा व्यक्ति का चेहरा स्कैन करता है। फिर एआई एल्गोरिदम इंटरनेट पर मौजूद डेटा से मिलान करता है। यह डेटा सोशल मीडिया प्रोफाइल या अन्य सार्वजनिक स्रोतों से आता है। इस प्रक्रिया में केवल कुछ सेकंड का समय लगता है। परिणाम चश्मे की हेड-अप डिस्प्ले पर दिखाई देने लगता है।
निजता पर उठ रहे हैं गंभीर सवाल
इस तकनीक ने निजता के भविष्य पर बड़े सवाल खड़े कर दिए हैं। क्या सार्वजनिक स्थान पर कोई भी हमारी पहचान जान सकता है? बिना सहमति के व्यक्तिगत डेटा एकत्र करना कहाँ तक उचित है? विशेषज्ञों का मानना है कि इससे दुरुपयोग का खतरा बहुत अधिक है। स्टॉकिंग या उत्पीड़न जैसी घटनाएं बढ़ सकती हैं। समाज में भरोसे का संकट पैदा हो सकता है।
तकनीकी नियमन की मांग तेज
इस घटना के बाद तकनीक के नियमन की मांग जोर पकड़ रही है। यूरोपीय संघ ने एआई एक्ट जैसे कानून पहले ही प्रस्तावित किए हैं। भारत में भी डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम लागू हुआ है। विशेषज्ञ चेहरा पहचान तकनीक के लिए सख्त अनुमति नियम चाहते हैं। उनका कहना है कि तकनीक का विकास जरूरी है लेकिन सुरक्षा भी उतनी ही जरूरी है।
कंपनियों पर है जिम्मेदारी
तकनीकी कंपनियों पर यह जिम्मेदारी भी आती है। उन्हें ऐसे उत्पाद बनाते समय नैतिक दिशानिर्देशों का पालन करना चाहिए। डेटा संग्रह और उपयोग की पारदर्शी नीति जरूरी है। उपयोगकर्ता की स्पष्ट सहमति के बिना डेटा इकट्ठा नहीं किया जाना चाहिए। कई कंपनियों ने इस तरह के चश्मे बाजार में लाने की योजना बनाई है। ऐसे में सार्वजनिक बहस और नीतिगत कार्रवाई का समय आ गया है।
