Business News: अडानी एंटरप्राइजेज ने दिवालिया हो चुकी कंपनी जयप्रकाश एसोसिएट्स लिमिटेड का अधिग्रहण कर लिया है। कंपनी के लेंडर्स ने मंगलवार को हुई वोटिंग में अडानी के प्रस्ताव को मंजूरी दी। अडानी का प्रस्ताव वेदांता के सत्रह हजार करोड़ रुपये के प्रस्ताव से लगभग पांच सौ करोड़ कम था। लेकिन अडानी का अपफ्रंट पेमेंट ज्यादा होने के कारण लेंडर्स ने उसे प्राथमिकता दी।
इस डील के साथ अडानी ग्रुप ने एक बड़ी कॉर्पोरेट जीत दर्ज की है। जयप्रकाश एसोसिएट्स पर पचपन हजार करोड़ रुपये से अधिक का कर्ज बकाया है। कंपनी पिछले साल जून से दिवालियापन प्रक्रिया में थी। डेलॉइट के भुवन मदान इस प्रक्रिया के रेजोल्यूशन प्रोफेशनल हैं।
क्यों चुना गया अडानी को
जयप्रकाश एसोसिएट्स केअधिकांश लेंडर्स भारतीय बैंक हैं। उन्होंने वेदांता के एक सौ सत्तर अरब रुपये के बजाय अडानी के एक सौ पैंतीस अरब रुपये के प्रस्ताव को समर्थन दिया। लेंडर्स ने अडानी के प्रस्ताव को बेहतर माना। अडानी का तुरंत भुगतान करने का प्रस्ताव लेंडर्स के लिए अधिक आकर्षक था।
इलेक्ट्रॉनिक ऑक्शन प्रक्रिया के दौरान वेदांता की बोली अधिक थी। लेकिन अडानी के प्रस्ताव में तत्काल नकदी प्रवाह का लाभ था। लेंडर्स ने नेट प्रेजेंट वैल्यू से अधिक तुरंत भुगतान को प्राथमिकता दी। इस निर्णय ने कॉर्पोरेट दुनिया में चर्चा शुरू कर दी है।
प्रतिस्पर्धी बोली प्रक्रिया
जयप्रकाश एसोसिएट्स कोखरीदने की रेस में कई बड़े नाम शामिल थे। अडानी और वेदांता के अलावा डालमिया भारत, जिंदल पावर और पीएनसी इंफ्राटेक ने भी बोली लगाई थी। डालमिया भारत शुरू में सबसे आगे मानी जा रही थी। लेकिन बाद में उसकी बोली की शर्तें लेंडर्स को स्वीकार्य नहीं लगीं।
कंपनी के प्रमोटर मनोज गौड़ ने भी अठारह हजार करोड़ रुपये का सेटलमेंट प्रस्ताव दिया था। लेकिन लेंडर्स को लगा कि उनके पास फंडिंग का पर्याप्त सबूत नहीं है। इस कारण उनका प्रस्ताव भी खारिज हो गया। अंतिम दौर में अडानी और वेदांता की बोली ही मुख्य रूप से विचार में थी।
जेपी ग्रुप की संपत्तियां
जयप्रकाश एसोसिएट्स जेपीग्रुप की फ्लैगशिप कंपनी है। यह सीमेंट, पावर, इंजीनियरिंग, हॉस्पिटैलिटी, रियल एस्टेट और स्पोर्ट्स इंफ्रास्ट्रक्चर में काम करती है। कंपनी के पास ग्रेटर नोएडा में एक हजार हेक्टेयर की स्पोर्ट्स सिटी भी शामिल है। यह संपत्ति कानूनी विवादों में घिरी हुई है।
यमुना एक्सप्रेसवे इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट अथॉरिटी ने 2019 में इस संपत्ति का आवंटन रद्द कर दिया था। अधिकारियों ने पांच सौ करोड़ रुपये से अधिक के डिफॉल्ट और लीज उल्लंघन का हवाला दिया था। कैग ऑडिट में भी आवंटन प्रक्रिया में गड़बड़ियां पाई गई थीं। यह विवाद अधिग्रहण प्रक्रिया में एक बड़ी बाधा बना हुआ है।
भविष्य की चुनौतियां
अडानीग्रुप के सामने अब कई चुनौतियां हैं। कंपनी को जयप्रकाश एसोसिएट्स के कर्ज का भार उठाना होगा। विवादित संपत्तियों के कानूनी मामलों का समाधान करना होगा। कंपनी के संचालन को फिर से शुरू करना होगा। अडानी की टीम इन चुनौतियों से निपटने की तैयारी कर रही है।
यह अधिग्रहण भारतीय कॉर्पोरेट जगत में एक महत्वपूर्ण घटना मानी जा रही है। इससे दिवालिया कंपनियों के अधिग्रहण की प्रक्रिया में नए मानदंड स्थापित होंगे। लेंडर्स के लिए यह निर्णय भविष्य के लिए एक उदाहरण बनेगा। कॉर्पोरेट दुनिया में इस डील पर व्यापक चर्चा जारी है।
