New Delhi News: दिल्ली की रोहिणी कोर्ट ने 2009 के चर्चित एसिड अटैक मामले में बड़ा फैसला सुनाया है। अदालत ने सबूतों की कमी का हवाला देते हुए तीन आरोपियों को बरी कर दिया है। एडिशनल सेशंस जज जगमोहन सिंह ने आरोपी यशविंदर, मनदीप मान और बाला को दोषमुक्त करार दिया। इन तीनों पर पानीपत की एमबीए छात्र शाहीन मलिक पर तेजाब फेंकने की साजिश रचने का आरोप था। हालांकि, पीड़िता ने इस फैसले के खिलाफ हाई कोर्ट जाने की बात कही है।
पीड़िता को चाहिए न्याय, सहानुभूति नहीं
इस एसिड अटैक केस में फैसले के बाद पीड़िता की वकील मडियाह शाहजर ने कड़ी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा कि कोर्ट ने सबूतों को सही तरीके से नहीं देखा। उनके अनुसार, यह फैसला भेदभावपूर्ण है और उन्हें न्याय नहीं मिला है। वकील ने साफ कहा कि 16 साल की कानूनी लड़ाई के बाद उन्हें कोर्ट की सहानुभूति नहीं, बल्कि इंसाफ चाहिए। पीड़िता अब इस फैसले को दिल्ली हाई कोर्ट और जरूरत पड़ने पर सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देंगी।
क्या थी आरोपियों की दलील?
आरोपी पक्ष का कहना है कि पुलिस ने गलत धाराएं लगाई थीं। आरोपी बाला की वकील प्रियादर्शिनी ने बताया कि यशविंदर पर अपहरण और रेप जैसी धाराओं (IPC 364A, 376) के तहत आरोप थे। वहीं, बाला और मनदीप पर आपराधिक साजिश के आरोप थे। बचाव पक्ष ने कोर्ट को बताया कि जिस नाबालिग ने एसिड अटैक किया था, उसे साजिश के लिए दोषी नहीं माना गया था। इसी आधार पर बालिग आरोपियों को भी राहत मिली। बता दें कि मुख्य हमलावर (नाबालिग) को 2015 में ही दोषी ठहराया जा चुका है।
18 सर्जरी और अंधेरे में गुज़रा जीवन
शाहीन मलिक का दर्द रूह कंपा देने वाला है। इस एसिड अटैक के बाद उन्हें कुल 18 सर्जरी करानी पड़ीं। हमले के बाद करीब ढाई साल तक वे देख नहीं सकती थीं। डॉक्टरों ने काफी मशक्कत के बाद उनकी एक आंख बचाई, लेकिन दूसरी आंख पूरी तरह खराब हो गई। शाहीन ने कहा कि वे सिर्फ हिम्मत के भरोसे जिंदा हैं। उन्हें लगा था कि शायद दुनिया में इंसाफ नहीं मिलेगा और आज वही हुआ।
नौकरी के बहाने बुलाया और किया हमला
अभियोजन पक्ष के मुताबिक, यह घटना 2009 की है। शाहीन मलिक हरियाणा के पानीपत में यशविंदर के कॉलेज में काउंसलर की नौकरी के लिए गई थीं। आरोप है कि वहां यशविंदर ने उनका यौन उत्पीड़न किया। इसके बाद यशविंदर की पत्नी बाला ने दो छात्रों के साथ मिलकर शाहीन पर एसिड अटैक की साजिश रची। इस मामले की धीमी रफ्तार पर 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने भी नाराजगी जताई थी और इसे ‘राष्ट्रीय शर्म’ बताया था।
