Delhi News: भारत में हर साल समय से पहले जन्मे (प्रीम- मैच्योर) लाखों बच्चों की मौत हो जाती है, जो दुनिया में इस तरह की मौतों की अधिकतम संख्या है. 2020 में अनुमानित 134 लाख बच्चे समय से पहले पैदा (प्री-मैच्योर) हुए थे जिनमें से 30 लाख यानि 22 प्रतिशत भारत से थे.
विश्व स्वास्थ्य संगठन की “बॉर्न टू सून” शीर्षक वाली रिपोर्ट के अनुसार, इस सूची में भारत के बाद पाकिस्तान, नाइजीरिया, चीन और इथियोपिया जैसे देश शामिल हैं.
कौन होते हैं समय पूर्व जन्मे बच्चे
समय से पूर्व जन्म लेने का मतलब यह है कि ये बच्चे गर्भावस्था के 37 सप्ताह पूरे होने के पहले ही पैदा हो जाते हैं. गर्भावधि उम्र के आधार पर, समय से पहले जन्म की उप-श्रेणियां होती हैं –
- 1- समय से बहुत ज्यादा पहले (28 सप्ताह से कम)
- 2- समय से बहुत पहले जन्म (28 – 32 सप्ताह)
- 3- मध्यम से देर समय से पहले (32 – 37 सप्ताह)
बना रहता है खतरा
एम्स पटना में नियोनेटोलॉजी के प्रमुख डॉ भाबेशकांत चौधरी ने इंडिया टुडे को बताया, ‘मैंने देखा कि नवजातों में लगभग 50 प्रतिशत समय से पहले जन्म (प्रीमैच्योर) ले रहे हैं, जिनमें से 10-20 प्रतिशत समय से अत्यंत पहले पैदा होते हैं. प्री-मैच्योर नवजातों के जीवित रहने की दर खतरनाक है, पर यदि बेहतर नर्सिंग देखभाल दी जाती है और कर्मचारी सक्षम हैं तो इस दर में कमी लाई जा सकती है.’
डॉ. चौधरी ने बताया कि समय से पूर्व जन्मे बच्चे में चार न्यूरोलॉजिकल जोखिम सबसे मुश्किल होते हैं जिनमें – रेटिनोपैथी ऑफ प्रीमेच्योरिटी (आरओपी), ब्रोंकोपल्मोनरी डिस्प्लेसिया (बीपीडी), नेक्रोटाइजिंग एंटरोकोलाइटिस (एनईसी), और इंट्रावेंट्रिकुलर हैमरेज (आईवीएच) शामिल है.
क्यों होता है प्री मैच्योर जन्म
अधिकांश बच्चों का समय पूर्व अनायास होते है, लेकिन कुछ चिकित्सा कारण भी इसमें शामिल हैं, जैसे संक्रमण, या गर्भावस्था की अन्य जटिलताएं, जिसकी वजह से सीजेरियन तरीके से बच्चे का जन्म जरूरी हो जाता है. विशेषज्ञों का मानना है कि धूम्रपान, शराब का सेवन, संक्रमण, इन विट्रो फर्टिलाइजेशन, पुरानी हृदय रोग, मधुमेह आदि कुछ अन्य कारक हैं जो समय से पहले जन्म का कारण बनते हैं.
वैश्विक स्तर पर, पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मौत में समय से पहले पैदा होना एक प्रमुख कारण है. सभी उम्र का विश्लेषण करने से पता चलता है कि इस्केमिक हृदय रोग, निमोनिया और डायरिया रोग के बाद समय से पहले जन्म (प्री- मैच्योर) दुनिया में मौत का चौथा सबसे प्रमुख कारण है. समय से पहले जन्म के कारण होने वाली मौतों में क्षेत्रीय रूप से भिन्नता है. कम आय वाले देशों में समय से पहले पैदा होने वाले 90 फीसदी से ज्यादा बच्चे कुछ ही दिनों में मर जाते हैं. भारत में स्थिति बहुत संतोषजनक नहीं है.
भारत में पांच साल की उम्र तक होने वाली मौत
पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर के मामले में भारत 200 देशों की सूची में 59वें स्थान पर है. भारत की तुलना में पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्यु दर वाले अधिकांश देश अफ्रीका से हैं. भारत में 2021 में पांच साल की उम्र तक प्रति 1000 जीवित जन्मों पर 30.6 मौतें हुईं, जबकि अमेरिका में यह 6.2, ऑस्ट्रेलिया में 3.7, चीन में 6.9 और रूस में 5.1 थी.
पिछले तीन दशकों में भारत में यह दर काफी कम हुई है. 1990 में यह 126.5 थी जो सन 2000 में घटकर 91.6, 2010 में 58.1 और 2021 में 30.6 पर आ गई है. भारत अब वैश्विक औसत से बेहतर है.