9 अगस्त 1961 का वो दिन जो आज भी बिलासपुर के लोग नहीं भूल पाते है…आज भी वे उस दिन के बारें में सोचते है तो उनकी आंखें नम हो जाती है। ऐसा क्या हुआ था उस दिन जो वहां के लोगों को ये दिन उदास कर जाता है…
हिमाचल प्रदेश में कई पावर प्रॉजेक्ट लगे और उनसे पैदा हो रही बिजली का पूरा देश फायदा उठा रहा है। मगर बांधों के कारण बहुत से लोगों को जमीन से विस्थापित होना पड़ा है। ऐसा ही किस्सा है बिलासपुर का…. आज नए बिलासपुर शहर को बसे 61साल हो गए हैं।
बता दें कि पुराना बिलासपुर और आसपास के कई गांव भाखड़ा बांध से बनी गोविंद सागर झील में समा गए थे। ये बात “9 अगस्त 1961 की है जब भाखड़ा बांध में पानी भरना शुरू हुआ और विशाल गोबिंद सागर झील बनी, उस समय पूरे बिलासपुर की आंखों में आंसू थे।
वहीं तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने इस प्रॉजेक्ट को आधुनिक भारत का मंदिर करार दिया था। और दूसरी तरफ लोग बेहद दुखी थे, जिन्होंने अपना घर, खेत, मंदिर, मैदान.. सबकुछ डूबते हुए देखा।
लोग खुद को दिलासा दे रहे थे और जुबान पर शब्द थे- चल वो जिंदे नवी दुनिया बसाणी, डुबी गए घर आई गेया पाणी। सब अपना सामान उठाकर नए आशियाने की तलाश में निकल गए। प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने विस्थापित लोगों को बसाने और सभी सुविधाएं देने का विश्वास दिलाया। कुछ लोगों को हरियाणा के हिसार, सिरसा और फतेहगढ़ में जमीन दी गई ।
बिलासपुर के लोगों को मजबूरी में अपनी बसी-बसाई दुनिया छोड़कर दूसरी जगह जाकर बसना पड़ा। उस समय लगभग 354 गांवों के 52 हजार लोगों को विस्थापित किया गया था। इनमें से कुछ तो हरियाणा चले गए तो कुछ हिमाचल में अन्य जगहों पर बस गए।
लेकिन अपनी जन्म भूमि से दूसरी भूमि पर बसना बिलासपुर के लोगों के लिए आसान नहीं था…आज भी लोग उस दिन को याद करते है तो सबके चेहरे पर मायूसी छा जाती है…
वहीं बिलासपुर के युवा गायक मनोहर दरोच का ने गीत “बेडिया रे ठेकेदारा” गाया है, जिसमें इस गीत के माध्यम से मनोहर दरोच ने बिलासपुर में बने भाखड़ा डैम के दर्द को बयाँ किया है। “बेडिया रे ठेकेदारा” गीत बिलासपुर जिले का एक सुप्रसिद्ध लोकगीत है। ये लोकगीत हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिला के भाखड़ा विस्थापितों के दर्द को बयां करता है।