सीधी हादसा; 32 सीटर वाली बस में थे 62 लोग, 75 किमी की जगह मिला था 138 किमी का परमिट

सीधी बस हादसे में 51 लोगों की मौत हुई, जबकि 4 लापता हैं। ड्राइवर समेत 7 लोग ही नहर से बाहर निकल सके। सरकार मुआवजे का मरहम लगाने की कोशिश में जुट गई है, लेकिन राज्य के परिवहन मंत्री गोविंद सिंह राजपूत मौके पर गए तक नहीं। सरकार को दो अन्य मंत्रियों को भेजना पड़ा। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान हादसे के 12 घंटे बाद भी यह तय नहीं कर पाए कि किस पर क्या कार्रवाई हो।
इस हादसे के पीछे मानवीय भूल से भी ज्यादा नियमों का मखौल ज्यादा नजर आता है। हादसे ने शिवराज सरकार को कठघरे में खड़ा कर दिया है, तो वहीं कुछ गंभीर सवाल भी खड़े हो गए हैं..
- पहला सवाल ये कि सरकार ने 32 सीटर बसों को अधिकतम 75 किमी के रूट का परमिट देने का नियम बनाया है। सीधी में हादसे का शिकार हुई बस भी इसी क्षमता की थी, लेकिन वह सीधी से सतना के बीच 138 किमी का सफर तय कर रही थी। नियम के खिलाफ जाकर बस को ये परमिट किसने दिया?
- दूसरा सवाल ये कि 32 सीटर बस में 62 मुसाफिर भर दिए गए, लेकिन ओवर लोडिंग करने वाली बस पर किसी जिम्मेदार की नजर क्यों नहीं गई? ओवर लोडिंग मिलने पर परिवहन विभाग के अफसरों के खिलाफ FIR दर्ज कर कार्रवाई के आदेश हैं। ऐसें में किसने ओवर लोडिंग की अनदेखी की?
कब बने थे यात्री बसों को लेकर नियम?
मध्यप्रदेश में दो साल पहले 3 अक्टूबर 2019 को इंदौर से छतरपुर जा रही बस रायसेन में अनियंत्रित होकर रीछन नदी में गिर गई थी। इसमें 6 लोगों की मौत हुई थी और 19 लोग घायल हुए थे। तब परिवहन मंत्री गोविंद सिंह ने यह नियम बनाया गया था कि 32 सीटर बस को 75 किमी से ज्यादा दूरी का परमिट नहीं मिलेगा।
पन्ना में 2015 में बस हादसा हुआ था, तब राज्य के तत्कालीन परिवहन मंत्री भूपेंद्र सिंह ने परिवहन अधिकारियों को बसों का निरीक्षण करने का आदेश दिया था। सड़क पर दौड़ती बसों में तय नियमों का पालन कराने की जिम्मेदारी परिवहन अधिकारियों को सौंपी गई है। ऐसा न होने पर उनके खिलाफ FIR दर्ज करने के आदेश हैं।
नियम बनने के बाद उनका कितना पालन हुआ?
परिवहन विभाग के मैदानी अफसरों की जवाबदेही तय किए जाने के साथ ही कहा गया था कि परिवहन मंत्री और आयुक्त खुद बसों का निरीक्षण करेंगे। परिवहन मंत्री गोविंद सिंह ने शुरुआत में भोपाल में स्कूल बसों का निरीक्षण जरूर किया, लेकिन इसके बाद वे प्रदेश में कब और जिस जिले में निरीक्षण करने गए, इसकी कोई जानकारी नहीं है।
सैकड़ों जानें जा चुकी हैं, लेकिन आंख मूंदे है सरकार
राज्य में सड़क हादसों की सूची लंबी है। गुना में बस से बिजली का तार टकराने का हादसा हुआ था। बड़वानी में दो बसकर्मियों के झगड़े में बस में आग लगने से कई मौतें हुई थीं। रायसेन, पन्ना जैसे बस हादसों में भी बड़ी संख्या में लोग हताहत हुए थे, लेकिन शुरुआती हल्ले के बाद कुछ नहीं बदला।
जांच-मुआवजे की परंपरा निभाती है सरकार
हादसे के बाद लोगों का आक्रोश शांत करने के लिए भले ही सरकार एक-दो अफसरों के खिलाफ एक्शन लेती है, जांच के आदेश भी जारी करती है। जांच रिपोर्ट आने पर उसे लागू कराने की घोषणा की जाती है, लेकिन हादसों पर लगाम नहीं लगती।